शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

लोकतंत्र की उलझन [अतुकांतिका]

 187/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


लोकतंत्र की

परिभाषा में

लोकतंत्र उलझा है,

उल्लू अपना

सीधा  करने में

जन-जन झपटा है।


जनहित से

उसको क्या करना

अपना ही हित पहले,

बड़े -बड़े मिथ्या 

भाषण से

दे नहले पर दहले।


नेता को

सत्तासन चाहे

जनता चाहे रोटी,

किसे देश की

चिंता भारी

गिद्ध झपटते बोटी।


चले कहाँ से

कहाँ पहुँचना

पता नहीं गंतव्य,

दिखे तिजोरी

अपनी भारी

अंधा है भवितव्य।


'शुभम्' जानते

भला - बुरा सब

दिखता केवल स्वार्थ,

देश बचाना

धर्म न समझा

बचा कहाँ परमार्थ।


शुभमस्तु !


26.04.2024 ●6.15आ०मा०

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