शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

कीचड़ आशावान है [ दोहा ]

 185/2024

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कीचड़  आशावान है,खिले कमल का फूल।

भक्त  करें  नित  आरती,  ओढ़े  हुए दुकूल।।

कीचड़-गंध  सुहावनी, गई  नासिका बीच।

लगे   मलयवत  पावनी,खुशियाँ  रहे उलीच।।


कीचड़ से मन बुद्धि का, जिनका हर शृंगार।

चिंतन उनका गेह का,करना निज उपकार।।

आशाओं  का  केंद्र है, कीचड़ दलदल  आज।

सूरज  से  पंकज  खिले, करे ताल पर  राज।।


उभय लिंग जननी पिता,कीचड़ जिसका नाम।

कमल  खिलाते   गर्भ  से,आए  पूजा  -  काम।।

धन - देवी  की  चाह  में, होती कीचड़ - भक्ति।

पंकज  पर  आसीन हों,रमा कनक की शक्ति।।


भले   भरा   हो   देह    में, कीचड़   का   अंबार।

मुख से  झरते  फूल  ही,कलुषित कपटी प्यार।।

कीचड़  के  गुण  फूल में, कभी न जाते  साथ।

घृणा  करें  जो  पंक  से,पंकज को नत   माथ।।


कीचड़   में  जो  जा फँसा ,कभी  न हो  उद्धार।

टाँग  पकड़  वह  खींचता, गाढ़ दलदली  धार।।

कीचड़  से  ही  जन्म  हो, कीचड़  में अवसान।

देखे  आँख  न  खोल  कर, और न देता  कान।।


बाहर  - भीतर  ठौर सब, कीचड़  के धन- धाम।

इसीलिए  तो  जानकर,  बढ़ते  भक्त सकाम।।


शुभमस्तु !


24.04.2024●9.00प०मा०

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