194/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मिलन - विरह ने प्रीति सजाई।
जीवन की कलिका मुस्काई।।
प्रियतम से जब संगम होता।
खिलता जीवन का नव सोता।।
नर - नारी का विरह कसौटी।
सुख समृद्धि की वर्षा लौटी।।
पति - पत्नी या मित्र सखा हो।
विरह जाँचता कौन सगा हो।।
भगिनी - विरह बंधु का परखे।
रक्षाबंधन में वह निरखे।।
आती भैया दूज निराली।
देती भगिनि प्रेम रस प्याली।।
भक्त - विरह में ईश कलपते।
बिना भक्त प्रभु जी कब रहते।।
विरह भक्ति की शक्ति बढ़ाए।
कठिन परीक्षा में सुख पाए।।
मात - पिता का घर जब त्यागे।
भाग्य लाड़ली के हैं जागे।।
जग की है ये रीति निराली।
पिए विरह की पीड़ा -प्याली।।
जग से दूर आत्मा जाए।
दुसह विरह दुख हमें सताए।।
परम सत्य सब कोई जाने।
फिर भी करे नकार न माने।।
'शुभम्' प्रात संध्या का मिलना।
है संयोग सुखदता भरना।।
दिवस शर्वरी मिलन विरह हैं।
युगल ईश के शुभ विग्रह हैं।।
शुभमस्तु !
29.04.2024●11.45आ०मा०
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