मंगलवार, 30 अप्रैल 2024

विरह [ चौपाई ]

 194/2024

                   

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मिलन - विरह  ने   प्रीति   सजाई।

जीवन  की  कलिका     मुस्काई।।

प्रियतम  से  जब     संगम   होता।

खिलता  जीवन  का  नव   सोता।।


नर -  नारी का   विरह    कसौटी।

सुख समृद्धि   की    वर्षा  लौटी।।

पति - पत्नी या  मित्र  सखा  हो।

विरह  जाँचता  कौन   सगा   हो।।


भगिनी - विरह   बंधु   का  परखे।

रक्षाबंधन     में   वह       निरखे।।

आती     भैया      दूज    निराली।

देती  भगिनि   प्रेम   रस   प्याली।।


भक्त  - विरह    में  ईश  कलपते।

बिना भक्त प्रभु  जी  कब   रहते।।

विरह  भक्ति  की   शक्ति   बढ़ाए।

कठिन परीक्षा  में    सुख   पाए।।


मात -  पिता  का घर जब त्यागे।

भाग्य  लाड़ली    के   हैं    जागे।।

जग  की  है  ये   रीति    निराली।

पिए   विरह की   पीड़ा  -प्याली।।


जग  से   दूर      आत्मा     जाए।

दुसह  विरह   दुख   हमें सताए।।

परम   सत्य  सब    कोई    जाने।

फिर भी करे    नकार   न   माने।।


'शुभम्' प्रात  संध्या का मिलना।

है   संयोग    सुखदता    भरना।।

दिवस  शर्वरी  मिलन   विरह हैं।

युगल ईश के  शुभ   विग्रह   हैं।।


शुभमस्तु !


29.04.2024●11.45आ०मा०

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