सोमवार, 8 अप्रैल 2024

राजनीति का खेल [गीतिका]

 170/2024

        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बदल   रहा    परिवेश, जगत  हिंसा ने   घेरा।

चढ़ा  देश  पर   देश, कह  रहा   मेरा -मेरा।।


भूले    मानववाद,  प्रेम  करुणा   सब   खोए,

है   काला  घननाद, गगन   में सघन अँधेरा।


राजनीति   का  खेल, मात-शह में रत  दुनिया,

डाले   हुए   नकेल,  मनुज   कोल्हू  में   पेरा।


आस्तीन  के  साँप, रात -दिन डसते जन  को,

मनुज  रहा  है  काँप, नहीं है   निकट सवेरा।


'मैं    ही सबसे  श्रेष्ठ', अहं  में    डूबे शासक,

बनते    सबसे  ज्येष्ठ,   मेष   दल बीच  बघेरा।


नीति  न  कोई  धर्म,  शस्त्र  बल सारी  ताकत,

शेष   न  दृग    में   शर्म,कहाँ से मिले   उजेरा।


'शुभम्'  बाँटना ज्ञान,नहीं चलना सत पथ पर,

चला   रहे  अभियान,  समय का कैसा फेरा!


शुभमस्तु !


08.04.2024●7.30आ०मा०

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