बुधवार, 10 अप्रैल 2024

देवासुर संग्राम [व्यंग्य ]

 171/2024 




 ©व्यंग्यकार


 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

 इस देश में कोई कितना ही बड़ा आतताई हो,मानवता का नृशंस हत्यारा हो,मानव देह में साक्षात राक्षस ही क्यों न हो;उसके चाहने वाले ,घावों पर मरहम लगाने वाले और राजनीति की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने वाले अवश्य मिल जाएँगे।इससे यही स्पष्ट होता है कि आदमी आदमी की लाशों पर राजनीति कर रहा है।जिस देश में आतंक के बल पर कारागार में पड़े हुए क्रूरकर्मा कैदी विधायक और सांसद चुन लिए जाएँ,वहाँ की जनता को कौन - सी उचित संज्ञा और विशेषणों से अलंकृत किया जाए; समझ से परे है। 

 जिस देश को हम विश्वगुरु से सम्मानित करते हुए नहीं अघाते;ऐसा लगता है जैसे कोई कंस,दुर्योधन या रावण स्वयं अपनी पीठ आप ही थपथपा रहा हो।आखिर विश्वगुरु के क्या मानक हैं?क्या लूट खसोट और जनता पर अत्याचार करना ही विश्वगुरु की परिभाषा है?जिस देश में आतताइयों के समर्थक नेता मातमपुर्सी के बहाने काजू पिस्ता आदि मेवा की दावतें उड़ा रहे हों,क्या ऐसे लोग सत्ता के ऊँचे सिंहासन के अधिकारी होने के सुपात्र हो सकते हैं? 

  सही बात को भी सही कह पाने का समर्थन न करना नेताओं की ओछी मानसिकता को दर्शाता है।वह दिन देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होगा ,जिस दिन ऐसे क्रूर जन जन नायक बनने का दम्भ भरते हुए सत्तासीन होंगे।विपक्ष का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि राष्ट्र कल्याण की योजनाओं को भी जन विरोधी कहा जाए ! राष्ट्र भक्त होना कोई सामान्य बात नहीं है।प्रत्येक नेता राष्ट्र भक्ति का तमगा गले में लटकाए घूमता है,किन्तु क्या उसे राष्ट्र भक्ति के अर्थ भी पता हैं? राष्ट्र भक्ति की आड़ में कितने भेड़िये और रंगासियार कारों के रेवड़ में अपने पीछे भेड़ों को हूटराइज़ कर रहे हैं।आओ! आओ!!चले आओ!!! हमारे पीछे चले आओ।हम ही तुम्हारे उद्धारक हैं। और चमचे और गुर्गे हैं कि मोटी -मोटी मालाओं से उनका भाव बढ़ा रहे हैं।सिक्कों से तोलकर यह जतला रहे हैं कि देखो यही है सब कुछ,इसी के लिए हम जीते- मरते हैं,दिन -रात एक करते हैं।हम किसी छापे और कानून से नहीं डरते हैं।पाँच साल के बाद यों ही विचरते हैं। हमें देखो और हमारे जैसे हो जाओ। हमें न किसी जेल का डर है ,न किसी नेता का। हम स्वच्छन्द भ्रमण करते हैं। 

 सपेरे ही साँपों से खेल सकते हैं,उन्हें पाल सकते हैं।साँपों को कितना ही दूध पिला लिया जाए ,किंतु अवसर पाते ही वे अपने पालक को भी डंसने से नहीं बख्शते।यहाँ न सपेरों की कमी है और न साँपों की।अब यह भी जगज़ाहिर हो चुका है कि सपेरा कौन है और साँप कौन हैं?सब कुछ जानते हुए भी सपेरे साँपों को दूध पिलाने में तल्लीन हैं।यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।कब महाकाल भगवान का त्रिशूल चल पड़ेगा कि न साँप रहेंगे और न सपेरे ही बच पाएँगे।कब पाप घट लबालब हो जाएगा तभी तो कोई चमत्कार होगा और सब देखते रह जाएंगे।

 'यथा राजा तथा प्रजा' की कहावत प्रसिद्ध है।किंतु 'यथा पंक तथा महापंक' होना किस बात का द्योतक है।सत्य यह भी है कि पानी में पानी मिले,मिले पंक में पंक। जैसे में तैसो मिले,मिले जहर में डंक।। यह भारत भूमि बड़ी ही समृद्ध है। यहाँ किसी भी वस्तु की कोई कमी नहीं है।जहाँ देव हैं वहीं राक्षस भी हैं। जिनका कार्य ही चलते पथिकों के पथ में काँटे बोना है।पर हाथी तो इसे अनदेखा करते हुए आगे बढ़ते हुए चले ही जा रहे हैं।दानवासुर संग्राम पहले कभी हुआ हो अथवा नहीं ,किन्तु इस समय अपनी भयंकर स्थिति में है। लगता है यह महायुद्ध कभी समाप्त नहीं होता ,पहले देव -दानवों के बीच हुआ था तो आज देशभक्त और सत्ताबुभुक्षु नेताओं के बीच छिड़ा हुआ है। यह भी स्पष्ट ही है कि विजयश्री देशभक्तों का ही वरण करेंगीं और निश्चित रूप से करेंगीं।

 शुभमस्तु ! 

 08.04.2024●2.00पा०मा०

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