शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

पथरीला यथार्थ [अतुकांतिका]

 163/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अपने भीतर

छिपाए रखना,

सच न बोलना,

निज जीवन में

विष न घोलना,

जगत ये विषमय पूरा।


झूठों का संसार 

रुपहला,

झूठा ही

नहले पर दहला,

सच पोथी की बात

अलग कुछ,

सच का होता

नित प्रति चूरा।


आदर्शों  से

चले न जीवन,

पथरीला यथार्थ का

उपवन,

मुँह में राम

बगल में छूरा।


खेत धर्म का

नागफनी उगती है

जिसमें,

राजनीति की बाड़ कँटीली,

फूल रही है रंग-बिरंगी

आग -बबूला।


'शुभम्' सत्य से दूर 

रहा जो,

दिखता है वह

 फला-फूलता,

भले हस्र 

जो भी हो उसका,

चिंता किसको 

केवल वर्तमान ही

सब कुछ

वही है धुला दूध का।


शुभमस्तु !


04.04.2024●6.30प०मा०

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