शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

चमचा [बाल गीतिका]

 165/2024

              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चमचे  का  भी  बड़ा   काम   है।

सुर्खी    में   नित   छपे  नाम है।।


कोई     आगे        कोई     पीछे,

रहने     देता    नहीं    आम   है।


जिसके  पास  न   चमचा   कोई,

लगती   उसको    सदा  घाम  है।


चमचा     चाटे    नित्य   भगौना,

भरे    तिजोरी    स्वर्ण  दाम   है।


झंडा     लेकर     चलता    आगे,

लेता  एक न   पल    विराम   है।


लोकतंत्र    का    खंभा    चमचा,

पड़ा   धूप   में   चर्म     श्याम  है।


चमचा    बिना   न    नेता   कोई,

नहीं  आज   तक   बना   राम है।


मतमंगों के   साथ     रात - दिन,

खाक   छानता   गाम - गाम   है।


'शुभम्'   छिपा   चमचागीरी   में,

पद  पाने  का   सुलभ   बाम  है।


शुभमस्तु !


05.04.2024● 11.15आ०मा०

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