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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चमचे का भी बड़ा काम है।
सुर्खी में नित छपे नाम है।।
कोई आगे कोई पीछे,
रहने देता नहीं आम है।
जिसके पास न चमचा कोई,
लगती उसको सदा घाम है।
चमचा चाटे नित्य भगौना,
भरे तिजोरी स्वर्ण दाम है।
झंडा लेकर चलता आगे,
लेता एक न पल विराम है।
लोकतंत्र का खंभा चमचा,
पड़ा धूप में चर्म श्याम है।
चमचा बिना न नेता कोई,
नहीं आज तक बना राम है।
मतमंगों के साथ रात - दिन,
खाक छानता गाम - गाम है।
'शुभम्' छिपा चमचागीरी में,
पद पाने का सुलभ बाम है।
शुभमस्तु !
05.04.2024● 11.15आ०मा०
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