193/2024
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
इधर वैशाख- जेठ की गरम - गरम लुओं से थपड़ियाती गर्मी और उधर चाय के खोखों पर चाय -चाय की निरन्तर बढ़ती जा रही सरगर्मी ! सब अपनी - अपनी चाय की खूबियाँ बखान कर रहे हैं।सच क्या है और झूठ क्या है,इससे एकदम नहीं डर रहे हैं। चाय -सोमेलियर(परिचारक) का काम ही उसे चाय का विशेषज्ञ बनाता है। कोई चाय वाला क्या कभी अपनी चाय की कभी खामियाँ गिनाता है? चाय बराबर बिक रही है,किन्तु वह खोखेदारों की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है। हर खोखेदार चाहता है कि केवल मेरी ही चाय बिके,उसके सामने और कोई क्यों टिके?जिसके भी हाथ में दिखे, उसी के ब्रांड का प्याला दिखे।
पर किया भी क्या जा सकता है? क्या कोई भी चाय की चुस्की लेने वाला चाय के स्वाद क्या ,उसके विज्ञापन पर मर मिट सकता है? माना कि कुछ जनता भेड़ हो सकती है; किंतु चाय का जादू क्या सिर चढ़ कर बोल सकता है? क्या वह ग्राहक के स्वाद में अमृत घोल सकता है?हर चाय के ग्राहक के चाय से अपने - अपने अलग स्वार्थ हो सकते हैं।जो पीकर चाय का चुक्कड़ दीवाने हो सकते हैं।
चाय बराबर खौल रही है।लगता है हर केतली कुछ अलग बोल रही है।आने - जाने वाले ग्राहकों को तोल रही है। पर ग्राहक के मन को कोई नहीं भांप पा रहा है।कभी इधर चखता है और पीने कहीं और जा रहा है।भेड़ों को भला कोई कब रोक पाया है ! वह कोई समझदार दोपाया नहीं,अन्धानुगामी चौपाया है। सब अपना- अपना गणित लगा रहे हैं कि किसके कितने प्याले काम आ रहे हैं।चरण दर चरण आगे बढ़े जा रहे हैं।पर चरणों के रुख नहीं जान पा रहे हैं। किसके चरणों ने किसका कप का वरण किया और तदनुसार अनुसरण किया;यह एक अनुमानी - सी बात है। अब वे दिन गए 'जब बड़े मियाँ फ़ाख्ता उड़ाया करते थे।'अब तो यही बात सही लगती है कि 'वक्त पड़े बाँका, तो गधे को कहें काका।'
सुना है चाय बनाने के लिए पानी,दूध,चीनी,लोंग,इलायची,अदरक और चाय की पत्ती की जरूरत होती है। यह अनुपात कैसा -कैसा हो, यह तो निर्माता विशेषज्ञ ही जानता है।थोड़े से अंतर से चाय का काढ़ा बन जाता है। पीने वालों की भी अपनी - अपनी पसंद है।उनकी बढ़ती संख्या से पता लगता है कि खोखेदार कितना हुनरमंद है।किसी खोखे पर एक बार स्वाद लेकर कोई बार -बार जाता है तो किसी को हमेशा के लिए अलविदा कह जाता है।इसी बिंदु पर चाय की क्वालिटी का पता लग पाता है।कोई - कोई एक लीटर दूध में पूरा दिन निपटाता है तो किसी के लिए दस लीटर भी कम पड़ जाता है।
खोखे से धोखा मत खा जाना। अन्यथा पड़ेगा आपको बुरी तरह पछताना।विज्ञापनों में सब सच ही नहीं होता। जुआ रखा हो गधे के कंधों पर और कहता है हमने हाइब्रीड बैल ही जोता।बड़ी -बड़ी बातें सुनने को मिलेंगीं, ध्वनि विस्तारकों से नारों की लड़ियाँ सजेंगी।चाय आप पियेंगे और नशा इनको चढ़ेगा। देह पर बगबगा कुर्ता धोती और शीश पर मुड़ासा इनके फबेगा। चाय का शौक फरमाना है, तो विवेक को गिरवी नहीं रख आना है।सबको पहले अच्छी तरह टटोलें,उससे पहले कुछ नहीं बोलें,
सत्य की तराजू पर चाय वाले को तोलें। अन्यथा पड़ जायेंगे सारे भविष्य में फफोले।खोखे वाले की नहीं, खोखे की धरती की मजबूती को परखना है। चाय के स्वाद में दीवाना बन इधर -उधर नहीं भटकना है।बिना देखे-भाले किसी सड़े आलू को नहीं गटकना है।ये चाय के खोखे तो उठते-बनते रहेंगे।यदि समझदारी से नहीं लिया काम तो पीने वाले कहीं के भी न रहेंगे।
शुभमस्तु !
29.04.2024●10.45आ०मा०
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