सोमवार, 29 अप्रैल 2024

चाय वही उत्तम भली [दोहा गीतिका]

 192/2024

        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


ऋतु  है तप्त निदाघ की,नहीं चाय की चाह।

शीतलता  की कामना, भरती हृदय उछाह।।


चाय-चाय की टेर से, बिगड़ा जिनका स्वाद।

आया   प्याला  चाय  का,नहीं कह रहे वाह।।


स्वाद  सदा  रहते  नहीं, सबके  एक समान।

देती   तब  आनंद  जो, देती   है  अब  दाह।।


सुलग रहे  चूल्हे  बड़े, छोटों की क्या पूछ ?

रंग  न  आया   चाय में,बदली मनुज पनाह।।


नेता   ले-ले   केतली,  दौड़   रहे  हर ओर।

इधर देखते  क्यों  नहीं,क्या हम करें गुनाह ??


हित अनहित अपना सभी,जानें चतुर सुजान।

चाय  वही  उत्तम भली, दिखलाए नव  राह।।


शुभम्' जगा है देश अब,ठगना क्या  आसान?

बासी   ठंडी   चाय    की, भाए नहीं सलाह।।


शुभमस्तु !


29.04.2024●7.15आ०मा०

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