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©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।
मतदाता को खूब रिझाऊँ।।
महक रहे दलदल में भारी।
सत्तासन की है तैयारी।।
देख रूप तेरा ललचाऊँ।
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।।
विष्णु- नाभि से तुम उग आए।
ब्रह्माजी के पिता कहाए।।
रात -दिवस तुमको बस ध्याऊँ।
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।।
कमलासन तुम ही कहलाते।
मानव - देवों को बहलाते।।
जलकुंभी - सा जग में छाऊँ।।
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।।
झूठ बोलना है मजबूरी।
बढ़े न जनता जी से दूरी।।
बार - बार कहकर पछताऊँ।।
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।।
सूर्योदय के सँग तुम आते।
नेताजी को तुम ललचाते।।
कीचड़ जैसा धन भर पाऊँ।
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।।
कमलापति - सी शैया मेरी।
मुझे सुलाए नींद घनेरी।।
कीचड़ पर तुम - सा उतराऊँ।
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।।
'शुभम्' चंचला हो घरवाली।
जग में जिसकी ख्याति निराली।।
जाए एक दूसरी पाऊँ।
आरति पंकपुत्र की गाऊँ।।
शुभमस्तु !
25.04.2024●11.00 आ०मा०
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