शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

आरति पंकपुत्र की गाऊँ [ गीत ]

 186/2024

        

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आरति    पंकपुत्र     की    गाऊँ।

मतदाता   को    खूब    रिझाऊँ।।


महक   रहे   दलदल   में   भारी।

सत्तासन    की      है     तैयारी।।

देख    रूप      तेरा    ललचाऊँ।

आरति  पंकपुत्र     की     गाऊँ।।


विष्णु-  नाभि  से  तुम   उग आए।

ब्रह्माजी    के     पिता     कहाए।।

रात -दिवस तुमको    बस  ध्याऊँ।

आरति  पंकपुत्र      की      गाऊँ।।


कमलासन   तुम   ही     कहलाते।

मानव  -   देवों     को     बहलाते।।

जलकुंभी  - सा    जग में    छाऊँ।।

आरति    पंकपुत्र     की     गाऊँ।।


झूठ     बोलना      है      मजबूरी।

बढ़े   न  जनता जी      से     दूरी।।

बार  -  बार    कहकर    पछताऊँ।।

आरति    पंकपुत्र    की     गाऊँ।।


सूर्योदय  के  सँग      तुम    आते।

नेताजी   को    तुम     ललचाते।।

कीचड़  जैसा  धन    भर    पाऊँ।

आरति  पंकपुत्र     की      गाऊँ।।


कमलापति  -  सी     शैया   मेरी।

मुझे     सुलाए     नींद     घनेरी।।

कीचड़ पर  तुम -  सा    उतराऊँ।

आरति    पंकपुत्र    की    गाऊँ।।


'शुभम्'   चंचला    हो    घरवाली।

जग  में जिसकी ख्याति  निराली।।

जाए     एक        दूसरी      पाऊँ।

आरति   पंकपुत्र       की    गाऊँ।।


शुभमस्तु !


25.04.2024●11.00 आ०मा०

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