बुधवार, 3 अप्रैल 2024

रंगोत्सव होली [सजल]

 159/2024

           

समांत :इयाँ

पदांत : अपदांत

मात्राभार :20

मात्रा पतन: शून्य। 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रंग  के  संग  में    खेलतीं   होलियाँ।

नृत्यरत कसमसाती हैं  हमजोलियाँ।


रात  आधी  हुई  बाग  महका  बड़ा,

पेड़  महुआ  करे  खूब  बरजोरियाँ।


टेसू   गुल  की  छाई   हुई  लालिमा,

मोर  के   संग में   नाचती  मोरियाँ।


चैत्र  लगते  तपन  देह  में अति बढ़ी,

भानु की चढ़ गईं भाल की त्यौरियाँ।


रंग   की   मार  की  तीव्र  बौछार है,

अंग आँचल  छिपाए  फिरें  गोरियाँ।


ये  पाटल उठा   सिर  प्रमन   झूमते,

गोप ग्वाले  कसे   झूमते   कोलियाँ।


रंग  उत्सव - समा   सराबोर  रंग से,

'शुभम्'क्यों चुभेंगीं शब्द की गोलियाँ!


शुभमस्तु !


01.04.2024●8.30 आ०मा०

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