रविवार, 7 अप्रैल 2024

आरोपों की सुनामी [ व्यंग्य ]

 167/2024


      

©व्यंग्यकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

आरोप लगाना मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है।यहाँ कोई भी किसी पर कोई भी आरोप लगा सकता है।उसे अन्य प्रकार की स्वतंत्रता की तरह दोषारोपण की भी स्वतंत्रता मिली हुई है।'अच्छी -अच्छी गड़क और कड़वी-कड़वी थू' का पूर्ण अधिकार मिला हुआ है। 

    कोई भी सास अपनी बहू पर निस्संकोच आरोप लगा सकती है।कोई नेता दूसरे नेता पर आरोप लगा कर अपने दामन को गंगाजल की तरह पाक बना सकता है।हमारा कानून भले चिल्ल्ला- चिल्ला कर यह कहता रहे कि जब तक किसी पर लगाया गया आरोप सिद्ध नहीं हो जाता ,तब तक उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कानून अपनी जगह और ये जन समाज अपनी जगह पर हैं।आम आदमी कानून की भाषा नहीं समझ सकता।वह तो यही मानकर चलता है कि आरोप लग गया ,तो वह व्यक्ति दोषी भी हो गया।क्योंकि जब कहीं आग होती है,धुआँ भी तभी उठता है।बिना आग के धुआँ कैसा? कुछ न कुछ गड़बड़ होगा तभी आरोप भी लगेगा। यही कारण है कि इस देश- दुनिया में आरोप लगा देना एक बिना प्रमाण और बिना किसी साक्ष्य का एक ऐसा सहज कार्य है,जिससे आरोपण कर्ता स्प्ष्ट रूप से बच जाता है। 

     किसी व्यक्ति पर आरोप लगाने का कुछ न कुछ पवित्र उद्देश्य तो अवश्य ही रहता है। पहला यह कि आरोप लगाने वाले का चरित्र आरोपी के चरित्र से उज्ज्वल है।वह पाक दामन है। दूध का धुला हुआ है।दूसरा यह कि सामने वाले व्यक्ति को कलंकित कर देना। क्योंकि आरोपण कर्ता यह बखूबी जानता है कि देश की दीर्घसूत्री न्याय प्रणाली में महीनों नहीं , वर्षों तक भी आरोप को सिद्ध कर पाना असंभव कार्य है।तब तक तो सामान्य जन दृष्टि में वह अपराधी ही रहेगा।इस देश की 'नौ सौ दिन चले अढ़ाई इंच' व्यवस्था में दूध का दूध और पानी का पानी होना विशखपरिया का पेशाब लाने जैसा दुर्लभ कार्य है। 

   यहाँ आरोप लगाकर किसी को भी बिना प्रमाण जेल में ठूँसवाया जा सकता है।और आरोपण कर्ता अपनी मूँछों पर ताव देता हुआ अपना कॉलर ऊँचा करके दिखा सकता है। 'न नौ मन तेल होगा ,न राधा नाचेगी' के अनुसार न साक्ष्य और प्रमाण मिल पाएँगे न आरोप सिद्ध हो पायेगा।तब तक आरोपी जेल की सलाखों के पीछे जेल की रोटियाँ तोड़ता हुआ अपनी गिनी -चुनी बची हुई साँसों को ही तोड़ बैठेगा। 'आँख फूटी पीर गई' ।रोगी खत्म तो रोग जड़ से खत्म।आरोप वहीं का वहीं रह गया।निर्णय समय की विलंबता के प्रवाह में बह गया।और आरोपण कर्ता का कॉलर और भी ऊँचा हो गया। उज्ज्वल हो गया।

    व्यक्ति,समाज,सियासत,देश,धर्म, शिक्षा आदि क्षेत्रों में सर्वत्र आरोपों की अनेक नदियाँ बह रही हैं। सभी के अपने - अपने अदालत- सागर हैं, जहाँ न्याय के 'मीठे पानी' की पिपासा में वे गतिमान हैं।लगता है कि घर से लेकर बाहर,बाजार, मोहल्ला,सड़क,गली-गली,राजनीति,पारस्परिक सम्बन्ध,पक्ष-विपक्ष, यत्र तत्र सर्वत्र आरोपों की सुनामी चल रही है। सब सामने वाले को दोषी और अपने को देवता सिद्ध करने में जुटे हुए हैं।देश की अदालतें, पंचायत घर न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पर सुनामी है कि थमने का नाम नहीं लेती। जूझते -जूझते आरोपी का राम नाम सत्य हो लेता है और दोष वहाँ का वहीं ज़मीदोज़ हो जाता है।आदमी किस कदर पतित हुआ है,इससे देश और समाज का दर्पण स्पष्ट रूप से चिल्लाता है कि इस आदमी की तुलना पशुओं या चौपायों से मत करो,ये दोपाया अब बहुत आगे जा चुका है।दूसरों को नरकगामी बनाने के लिए आदमी किसी न किसी योजना में लगा हुआ है। उद्देश्य केवल इतना है कि उसके सिवाय सब नाली के कीड़े - मकोड़े हैं।यदि कहीं देवता ,देवत्व और दिव्यता है ; वह केवल उसके पास है। 

 शुभमस्तु ! 

 07.04.2024 ●8.30आ०मा० 

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