मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

शिशिर -राग [छन्द :माहिया]

कोहरा   छाया  है
पौष  का  महीना
काँपती  काया  है।
           
छोटे- छोटे दिन हैं
लंबी - लंबी   रातें
हम    तुम बिन  हैं।
           
ठिठुरन    बढ़   रही
टपकते   हुए   पात
शीत लहर चढ़ रही।
               
झुरमुट में पिड़कुलिया
बैठी  हैं   गम्भीर  मौन
गलगलिया      गौरेया ।
               
मौन   वृक्ष औ' लताएँ
तपस्वीवत चादर ओढ़
शीत   सबको  सताए।
         
ऋतु   नहीं   पावस   की,
तरु  तले   टपकती   बूँदें
शीत रात है अमावस की।

हनुमान किरीट की छटा
खिल उठी कली -कली
सघन  शिशिर  में  लता ।
  
जाड़ा  ही  जाड़ा  है
गरमी   जो  लेनी हो
चाय कॉफी काढ़ा है।
  
प्रणय   की  ऊष्मा है
जीवन - संगी के संग
यौवन की  सुषमा है।
        
आलू    के     खेत    में 
उठती हुई दूधिया वाष्प
फटे   झौरों   के वेग से।

ओढ़े   हुए  दुग्ध  चादर
गंगा -  धार     अविरल
शांत    गम्भीर    सुघर।

न  हिलती  हैं डालियाँ
ठिठुरे  हुए  द्रुम  लताएँ
न  झूम   रहीं  बलियाँ।

हँसता    हुआ   गेंदा  है
खिलखिलाता है गुलाब
जामुन  है  न  फरेंदा  है।

मौन    खड़े   नीम  हैं
पीपल वट शीशम भी
तपस्या  में    लीन  हैं।
   
धूप     गुनगुनाती - सी
सहलाती  बुलाती - सी
अपनापन  लाती - सी।

सौंधा  सरसों  का साग
रोटी  बाजरे   की  गरम
चने के भी  खुले  भाग।

गरम  मधुर  शकरकन्द
चटनी   संग  आलू भुने
शीत  के   सुहाने  छन्द।

💐 शुभमस्तु!
✍🏼©रचयिता
डॉ.भगवत स्वरूप " शुभम"

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