साथ-साथ हैं पर बात नहीं होती,
रेल की दो पटरियां हैं मुलाकात नहीं होती।
आदमी के रिश्तों में वह गर्माहट नहीं रही,
पहले-से दिन हैं न पहली -रात नहीं होती।
बनाया गया समाज जीते रहने के लिए,
स्वार्थवृत्ति से कड़ी कोई लात नहीं होती।
रोबोट में भी यदि धड़क उठता दिल ,
रोबोट्स से महान कोई जात नहीं होती।
घृणा और प्रेम तो पिल्ले भी जानते हैं,
काम आए न किसी औऱ के ऐसी घात नहीं होती।
पेट तो भर ही लेते हैं श्वान भी "शुभम",
यों आदमी के हाथ में बुरी मात नहीं होती।
💐शुभमस्तु !
✍🏼© रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप " शुभम"
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