सोमवार, 24 दिसंबर 2018

रेल की पटरियाँ

साथ-साथ हैं पर बात नहीं होती,
रेल की दो पटरियां हैं मुलाकात नहीं होती।

आदमी के रिश्तों में वह गर्माहट नहीं रही,
पहले-से दिन हैं न पहली -रात नहीं होती।

बनाया गया समाज जीते रहने के लिए,
स्वार्थवृत्ति से कड़ी कोई लात नहीं होती।

रोबोट में भी यदि धड़क उठता दिल ,
रोबोट्स से महान कोई जात नहीं होती।

 घृणा और प्रेम तो पिल्ले भी जानते हैं,   
काम आए न किसी औऱ के ऐसी घात नहीं होती।

पेट तो भर ही लेते हैं श्वान भी "शुभम",
यों आदमी के हाथ में बुरी मात नहीं होती।

💐शुभमस्तु !

✍🏼© रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप " शुभम" 

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