-१-
कभी कोहरा घिरता है
कभी मेघ छाते हैं,
बेमौसम होती वर्षा
बड़े सितम ढाते हैं,
देश की परवाह किसे
मात्र चाहत कुर्सी की,
इसीलिए तो लोग
सियासत में आते हैं।
-२-
फैसला आया तो फासले बढ़ गए
अपने-अपने दावे हुए वे अड़ गए
मुट्ठी बंधती नहीं बिना पाँचों के
फूल की पंखुरी-से सपने झड़ गए।
-३-
अब तुम्हारी असलियत बाहर आ ही गई,
निर्मल आकाश में बदली छा ही गई,
छिलका जब हटा तो फाँखें दिखने लगीं,
संतरे की मिठास में अम्लता आ ही गई।
-४-
लड़ते ही रहोगे यों कुर्सी के लिए?
पता लग गया है तुम्हारी तुरसी के लिए
देश हित की नहीं सोचते हो, अपना हित ही
समझे थे समंदर हो जीते हो सरसी के लिए?
-५-
देशभक्ति क्या है तुम क्या जानो!
जेबभक्ति क्या है तुम ही जानो,
मुखौटे लगा के गधा घोड़ा न बना
"शुभम" वेदना क्या है तुम क्या जानो!
💐शुभमस्तु !💐
✍🏼©रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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