◆1◆
एक अंधे के हाथ बटेर लगी
अब चाह उन्हें मुरगी - मुरगा।
पाँच साल में मौज करी नित ही
संग चाट रहे गुरगी - गुरगा।
चमचा -चमची की कहानी बड़ी
धरती पर भोग रहे स्वर्गा।
गेहूँ के संग "शुभम" पानी लगे
खाल सूखी भी लाल हुई जर्दा।।
◆2◆
पुण्य रहा नहिं पाप रहा कुछ
कीजिए जो सब पुण्य सदा ही।
मुख से निकले कभी वाणी तेरे
करिए मत, हाथ में धार गदा ही।
मुँह से न लगाना कभी जनता
रखना प्रसन्न अपने गुरगा ही।
कान के कच्चे जो नेता रहें
'शुभम'मालिक है उनका कर्ता ही।
◆3◆
भाल लिखा राजयोग एक नेता का
पढ़ना - लिखना बेकार है सारा।
छल , छन्द औ' द्वंद्व उपाधि महा-
उपयोगी रहेंगी धनि जन्म तुम्हारा
कर में कानून रहे दिन - रात
सुविधा सब मुफ़्त में अमृतधारा।
माल औ' माला के ढेर लगें
बनने नेता "शुभम" जीवन हारा।।
◆4◆
निज हित देश हित हम देशवासी
देशभक्ति की नई परिभाषा है।
सत्तर अस्सी भी पार हो जायें
चुनाव लड़ते जाना जब तक साँसा है।
सियासत ही तो जिंदगी हमारी
युधिष्ठिर का दाँव शकुनि का पासा है।
'शुभम' खून लग गया दाँत से अब
खून की पिपासा का चस्का खासा है।।
💐शुभमस्तु!
✍🏼©रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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