मायाचारी के लिए,करना मायाचार।
साधु भाव से ही करें, सज्जन से व्यवहार।।1
जरा रूप की नाशिनी,आशा हरती धीर।
नीच पुरुष-सेवा हरे, सदाचार का चीर।।2
लज्जा नाशक काम है,लक्ष्मीनाश क क्रोध।
अहंकार सर्वस्व का, नाशक कर लें शोध।।3
अविश्वस्त के घर कभी, जाय न सायंकाल।
छिप चौराहे मत खड़ा,हो जब रात्रिकाल।।4
जो करता स्न्नान नित,पाता बलअरु रूप।
कोमलता उज्ज्वल वरण, शोभा गंध अनूप।।5
गाली निकले गाल से, खींचे उर के बाल।
मधुर वचन तत्काल ही, सुखद गुलाबी गाल।।6
क्रोध हर्ष के वेग को, रोक सके जो धीर।
विपदा में खोता नहीं, धीरज वह श्रीवीर।।7
सर्वश्रेष्ठ बल बुद्धि का, भुजबल रहा कनिष्ठ।
अभिजात बल पूर्वजी,धनबल किसे न इष्ट।।8
नारी ,राजा ,सर्प पर, करना मत विश्वास।
शत्रु, भोग,आयुष्य अरु, पठित पाठ की आस।।9
बुद्धि -बाण से जो मरा, उसको मंत्र न होम।
वैद्य, दवा सब व्यर्थ हैं,मंगल-कर्म न सोम।।10
अनल छिपा है काष्ठ में, जग का तेज महान।
जलता जब तक वह नहीं, नहीं 'शुभम' नुकसान।।11
💐शुभमस्तु!
✍🏼©रचयिता :
*डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें