दिन भर चलती रहती हूँ,
कभी नहीं मैं रुकती हूँ,
नहीं रात को मैं सोती हूँ,
नहीं थकित भी मैं होती हूँ,
मैं कहलाती समय -घड़ी।
दीवारों पर टंगी हुई मैं,
हाथ - कलाई बँधी हुई मैं,
कम्प्यूटर मोबाइल में भी,
गिरजा और देवालय में भी,
मैं कहलाती समय -घड़ी।
बार - बार तुम मुझे देखते,
टाँग पीठ पर अपने बस्ते,
चलते मुझे देख विद्यालय,
घण्टे बजते घर देवालय,
मैं कहलाती समय -घड़ी।
घड़ी -घड़ी पर घण्टा लगता,
पढ़ने का तब विषय बदलता,
चपरासी टन - टन है करता,
कान तेरा झन-झन है करता,
मैं कहलाती समय - घड़ी।
सूरज सदा समय से उगता,
रात में चन्दा मामा चलता,
समय से बँधे हुए वे सारे,
'शुभम'वे रहते घड़ी बिना रे,
मैं कहलाती समय - घड़ी।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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