शनिवार, 8 दिसंबर 2018

ईमान सच से दूर [ गज़ल]

आदमी   ईमान   सच  से
दूर   होता    जा    रहा है,
आबरू    इज्ज़त    यकीं
हर आम खोता जा रहा है।

लूट   चोरी   या ग़बन  से
खूब   दौलत   जोड़   ली
आप ख़ुद दुश्मन  बना है
खार   बोता    जा रहा है।

उठ  गया   उसका  यकीं
मेहनत  की  रोटी से यहाँ
कामचोरी,  छल ,  फ़रेबी
गर्क    होता  जा   रहा है।


अब  तो  मोहव्वत   सिर्फ़
फिल्मों में बची दम तोड़ती
आदमी   खुदगर्ज़     इतना
रोज़   होता    जा   रहा है।

सभ्यता कपड़ों से बाहर
आ   गई    इंसान    की,
आदमी  घर   बाजार  में
अब नग्न होता जा रहा है।

मुजरिमे/ -   रिश्वत    को
रिश्वत दे छुड़ाता है 'शुभम'
हाय    मेरे      मुल्क     को
क्या आज होता जा रहा है!

💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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