तू धारिणी मैं धार्य था,
तेरे लिए अनिवार्य था,
तेरे रक्त से पोषित
उदित कलिका सदृश
नवचेतना का द्वार था,
खुल गया ज्यों मम जीवन का
हर्ष वर्षातिरेकमय रोदन
सुसज्जित द्वार था,
वेदना सहती हुई भी
तू प्रसन्न वदना प्रमन,
भूलकर तन -वेदना,
खिले अधरों के सुमन।
'माँ' नाम की संज्ञा से सुसज्जित
तू हो गई उस क्षण,
प्रकृति का गा रहा
संगीत हर कण -कण,
पावस -धरा में
ज्यों हुआ नव अंकुरण,
बाह्य पवन का पावन स्पर्श
धरित्री ताप नभ का
सौम्यतम संस्पर्श,
पंच महाभूतों का प्रताप
संस्पर्श का आनन्द
ज्यों प्रभु जाप,
पितामह पितृगृह में
खुशियाँ अपार,
एक लाल आया है आज घर
खोलता वंश द्वार,
पौष मास की अमावस्या
निशीथ की घड़ियाँ,
दिवस शुक्रवार की क्षणिका,
अट्ठाईस दिसम्बर वर्ष
उन्नीस सौ इक्यावन,
माता पिता दादी औऱ बाबा
का घर हुआ शुभ पावन।
हे मेरी पूज्य अम्मा पूज्य पिता
पूज्य पितामह पितामही,
आपके घर की मैं एक
नन्हीं सी कड़ी,
तुमसे उऋण हो पाना
कभी भी संभव नहीं,
सौभाग्य मेरा यही है
सत्यं, शिवम , सुंदरम "शुभम"
मैं बीज माँ तू मेरी मही।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
🌱 डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"
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