शनिवार, 15 दिसंबर 2018

मय का प्याला [ ग़ज़ल ]

वही मय है वही मयकदा  है,
सरनामे का परचा जुदा -जुदा है।

पीने वाले नशे के आदी हैं,
नशे में रहना  इक अदा है।

नशा टूटा कि बदले सरनामे,
लटकनों की क़िस्मत ही मयकदा है।

रास्ते को ही समझ बैठा है मंज़िल,
मय का प्याला ही ख़ुदा है।

कान बहरे हैं खुला मुँह का ढक्कन,
कुछ भी कह दें आवाज़ -ए-ख़ुदा है।

परचों से नहीं बदला नशा मय का,
शान से जीना ही हरहाल बदा है।

ताज़िन्दगी नशे में रहना है "शुभम",
कौन शख़्स है जो नहीं मयशुदा है।


💐शुभमस्तु ! 
✍🏼© रचयिता
डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"

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