शनिवार, 1 दिसंबर 2018

उम्र छिपाऊँ स्त्री मनोविज्ञान

   कहा जाता है कि इंसान को किसी पुरुष की आय और  स्त्री की आयु नहीं पूछनी चाहिए।यह भी एक उच्च कोटि का मनोवैज्ञानिक तथ्य है।इसके मूल में बहुत सारी बातें कही औऱ सोची जा सकती हैं। आय बताने पर हो सकता है कि यदि ज्यादा हो तो प्रश्नकर्ता की नज़र ही न लग जाए। कम हो तो बताने में भी  हिचकिचाहट महसूस हो। धन की गोपनीयता के कारण भी पुरुष उसे खुलकर बताने में सहज नहीं हो पाता , इसलिए वह इधर उधर की बातें करके घुमाने की कोशिश करने लगता है। आदि आदि।
   इसी प्रकार जब किसी  स्त्री से उसकी आयु पूछी जाती है, तो पहले तो वह बताना ही नहीं चाहती और यदि बताती भी है तो अट्ठाईस तीस से बढ़ने में उसे असहजता और अपमान भाव की अनुभति होती है। वह जीना तो अधिक चाहती है, परंतु कम बताने में उसे गौरव की अनुभूति होती है।
   स्त्री के इसी मनोविज्ञान पर  युग -युग का सौंदर्य -प्रसाधन- व्यवसाय और कम्पनियाँ जीवित हैं। उनमें बनाया जाने वाली सौंदर्य प्रसाधक सामग्री : क्रीम, पाउडर ,लिपस्टिक, महावर, बिंदी , ब्यूटी सोप , फेश वाश, बॉडी लोशन, काजल, मस्कारा, आई लाइनर ,पर्फ्यूम, स्वर्ण , प्लेटिनम, रजत , हीरे, जवाहरात जड़ित आभूषण सभी कुछ आयु को कम से कम दर्शाने के लिए ही तो हैं। नारी के इस दौर्बल्य की पोषक औऱ साधक कम्पनियाँ  उसे चूस रही हैं। कौन नहीं जानता कि संसार की एक भी क्रीम सांवली या काली स्त्री को गोरा नहीं बना सकतीं। किन्तु फिर भी वे जानबूझकर उनकी खुशबू से सम्मोहित होकर खरीदती और प्रयोग करती हैं। यदि क्रीमों के प्रयोग से स्त्री गोरी हो जाती तो अफ्रीका के नीग्रो औऱ हब्सी भी दूध जैसे बुर्राक सफ़ेद हो ही जाते। लेकिन दुर्भाग्य है कि आदमी चाँद पर तो पहुँच गया, पर चाँद की उपमा देने योग्य अपनी  प्रिया का मुख चन्द्र नहीं बना पाया। यहीं चूक गया। बस कम्पनियां मूर्ख बनाकर, टी वी वाले विज्ञापन दिखा कर नारी को रात-दिन ठग ही तो रहे हैं।
   किसी ने ये सही कहा है कि संसार की प्रत्येक स्त्री जब आईने के सामने खड़ी होती है , तो वह स्वयं को विश्व की सर्वश्रेष्ठ स्त्री की अनुभूति के साथ आल्हादित होती है।  दूसरों को कमउम्र और सुंदर दिखाई दे , बस इतना सा स्त्री - मनोविज्ञान है। 'साहस अनृत चपलता माया।' के अनुसार भी यदि विचार किया जाए ,तो अनृत अर्थात झूठ बोलना उसका स्वाभाविक और प्राकृतिक गुण है। कोई भला क्या कर लेगा ? अब यदि वह चालीस की जगह चौबीस , चौवन की जगह  चौंतीस बताए या लिखे तो आप क्या कर लेंगे। अरे भाई! यह   तो उसका जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह सदा युवा ही रहे, इसलिए उसके पूरक और पोषक साधन मॉल , मेले , मार्केर्ट आदि में सर्वत्र  भरे पड़े हैं।
   पुरुष भी स्त्री को उसकी झूठी प्रशंसा करके युग -युग से ठगता आ रहा है। तुम चंद्रमुखी हो,  कमलनयनी हो, मृगनयनी हो, आदि आदि मधुर शहद लिपटे वचनों से ठगता रहा है। उसके पैरों में आभूषणों की बेड़ियाँ डालकर उसे बंदी बना लिया और घर के कोने , चूल्हा चक्की तक सीमित कर दिया। यही सब नारी मनोविज्ञान को पुरुष द्वारा भी खूब भुनाया गया, भुनाया जा रहा है औऱ भुनाया जाता रहेगा।
   उम्र कम बताने के स्तर पर बड़ी बड़ी उच्च शिक्षित नारियाँ और अपढ़ निरक्षर नारियां एक ही पायदान पर विराजमान हैं। इसलिए उनकी जन्मतिथि पूछे जाने पर वे   तारीख और महीना ही लिखती और बताती हैं।वर्ष वहाँ भी पर्दे में घूंघट की आड़ में ही रहती है। क्योंकि यदि वर्ष ही बता  दिया तो फिर अगला गणना करके पूरी वर्तमान आयु ही आगणित कर लेगा। इसलिए उसे छिपाओ। लेकिन उनकी असलियत की पोल उस वक्त खुल ही जाती है , जब वे किसी भी टेस्ट, परीक्षा, प्रतियोगिता , प्रवेश आदि के लिए फार्म भरने लगती हैं। वहाँ केवल 25 अक्तुबर, 26 जनवरी या 15 अगस्त लिखने से काम चलने वाला नहीं है। यदि वहां भी स्त्री- आरक्षण होता तो वे किसी भी मूल्य पर अपना जन्म वर्ष नहीं खोलतीं । वैसे भी नारी -प्रकृति छिपाने की है , क्योंकि प्रकृति ने भी तो उसका निर्माण करते समय इस तथ्य का बहुत ध्यान रखा है।  समझदार के लिए संकेत पर्याप्त है। कुछ अवगुंठन में रहने दें, क्योंकि उसका एक अलग सौंदर्य है। जैसे खिलने से पहले पुष्प कली में अवगुंठित रहता है। खिला तो खुला। जिज्ञासा समाप्त।  फिर क्या... कोई आकर्षण नहीं, कोई सम्मोहन नहीं , कोई  रहस्य नहीं। कोई बहस नहीं।

💐शुभमस्तु !
✍🏼©लेखक
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...