सोमवार, 31 दिसंबर 2018

गुड़ खाएँ गुलगुले न भाएँ [ दोहे ]

गुड़ खाएँ नित प्रेम से,
पर गुलगुले  न  भाएँ।
युग को पहचानें नहीं,
भारतीय    कहलाएं।।1।

पेंट सूट धारण किया,
बाँधें         कंठलँगोट।
धोती कुर्ता त्यागकर
ढूंढ़  रहे  हैं  खोट।।2।

साड़ी ब्लाउज़ भी गया,
जींस  टॉप   ली   धार।
क्यों मानें   नववर्ष को ,
मनमानी    सरकार।।3।।

विवाह निमंत्रण -पत्र में
अंग्रेज़ी           तारीख ।
पर  विरोध  की  दे  रहे,
समय -विरोधी सीख।।4।

अंग्रेज़ी     तारीख    से,
सर्विस    हर    व्यापार।
नए  वर्ष  के  वदन  पर ,
कीचड़   की  बौछार!!5।

ट्रेन  बसें वायुयान  सब ,
आंग्ल   वर्ष    अनुरूप।
अपने  पथ चलते सभी ,
क्यों विरोध का कूप??6।

जन्म दिवस निज पुत्र का,
या         स्कूल -    प्रवेश ।
दशमी   माह  अषाढ़  की,
क्या लिखता है देश??7।

अंग्रेज़ी     -   स्कूल     में ,
पढ़ती       है       संतान ।
अंग्रेज़ी  -    नववर्ष    के ,
स्वागत  से अनजान!!8।

कृष्णपक्ष  की    अष्टमी,
पौष     मास   में     रेल।
समय -सारिणी  में नहीं ,
पैसेंजर       या      मेल।।9।

मिश्रित संस्कृति सभ्यता,
शुद्ध     न      लोकाचार।
इस्लामी        अंग्रेज़ियत,
सबका  बना    अचार।।10।

हिंदी ,    उर्दू ,    फ़ारसी,
अरबी     सबका    मेल।
भाषा - जननी  संस्कृत,
अंग्रेज़ी  का  भी  खेल।।11।

हिज़री , विक्रम , ईसवी ,
शक   संवत     व्यवहार।
विश्व  - पटल  पर एक  ही,
सन  का  है   विस्तार।।12।

फ़िल्म,अनुकरण,रूढ़ियाँ,
कला ,   काव्य ,    संगीत ।
प्रथा  पूर्वजों   की  प्रबल,
सिखा  रही  नवगीत।।13।

समय   बदलता  जा रहा,
ज्यों   सरिता    का   नीर।
चले  समय के  साथ जो,
उठे  न  उर  में   पीर।।14।

अपने -  अपने  राग  की
ढपली    कर    लें   बन्द।
वीणा  की  झनकार  के,
"शुभम"न बिसरो छन्द।।15।

शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
 डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"

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