पौष माघ - सी जाए उमरिया।
क्षण-क्षण छीजे मनुज गगरिया।।
बालापन के पुष्प सुनहरे।
महक रहे घर आँगन दुहरे।।
मात - पिता के प्यारे पहरे।
मन पर छाप छोड़ते गहरे।।
खेले खेल -खिलौने गुरिया।
पौष माघ -सी .....
वय किशोर की खिलती क्यारी।
उपवन की ज्यों ये फुलवारी।।
मानव -जीवन सुख -दुःख भारी।
नित प्रति भोग रहे नर - नारी।।
गंगोत्री से बहता दरिया।
पौष माघ -सी .....
उगीं कोपलें यौवन पाया।
पुष्ट सौष्ठवी कंचन काया।।
रग - रग में आनन्द समाया।
उष्ण स्फूर्तिमयी नव छाया।।
नाचे राधा संग संवरिया।
पौष माघ -सी....
अर्थोपार्जन की नित गुनगुन।
यौवन गूढ़ प्रौढ़ता की धुन।।
ता ता थैया रुनझुन गुनगुन।
नए -नए नित सपने बुन बुन।।
धूप -छाँह युत बनी दुपहरिया।
पौष माघ -सी.....
गया वसंत फूल मुरझाए।
तितली भौंरे पास न आए।।
चम्पाकली देख शरमाए।
अपने होने लगे पराए।।
सिर पर छाई श्वेत बदरिया।
पौष माघ -सी .....
आई जरा पूरती जाले।
शक्ति क्षीण तन ताने -बाने।।
ज्ञानी अनुभव तम्बू ताने।
मिले उपेक्षा बात न माने।।
झुकती जाए क्षीण कमरिया।
पौष माघ -सी .....
पिंजरे में पंक्षी तड़पाये।
वसन बदलने को तरसाये।।
है चाहत पर उड़ा न जाये।
पुनर्जन्म का अवसर पाये।।
कब मिलनी है नई नगरिया।।
पौष माघ -सी .....
💐 शुभमस्तु !
✍🏼©रचयिता
☘ डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"
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