बुधवार, 26 दिसंबर 2018

पौष माघ-सी जाए उमरिया [गीत]

पौष माघ -  सी जाए उमरिया।
क्षण-क्षण छीजे मनुज गगरिया।।

बालापन  के  पुष्प  सुनहरे।
महक रहे घर आँगन दुहरे।।
मात - पिता  के प्यारे पहरे।
मन पर छाप छोड़ते गहरे।।
खेले खेल -खिलौने गुरिया।
पौष माघ -सी .....

वय किशोर की खिलती क्यारी।
उपवन की ज्यों   ये  फुलवारी।।
मानव -जीवन सुख -दुःख भारी।
नित  प्रति भोग रहे नर - नारी।।
गंगोत्री    से    बहता     दरिया।
पौष माघ -सी .....

उगीं    कोपलें    यौवन   पाया।
पुष्ट   सौष्ठवी    कंचन   काया।।
रग - रग  में   आनन्द   समाया।
उष्ण    स्फूर्तिमयी  नव छाया।।
नाचे    राधा   संग    संवरिया।
पौष माघ -सी....

अर्थोपार्जन  की  नित गुनगुन।
यौवन   गूढ़  प्रौढ़ता की  धुन।।
ता ता थैया  रुनझुन   गुनगुन।
नए -नए नित सपने  बुन बुन।।
धूप -छाँह युत बनी दुपहरिया।
पौष माघ -सी.....

गया  वसंत   फूल    मुरझाए।
तितली  भौंरे  पास   न आए।।
चम्पाकली    देख     शरमाए।
अपने    होने    लगे    पराए।।
सिर  पर छाई  श्वेत  बदरिया।
पौष माघ -सी .....

आई    जरा   पूरती     जाले।
शक्ति क्षीण  तन  ताने -बाने।।
ज्ञानी  अनुभव    तम्बू   ताने।
मिले  उपेक्षा  बात  न   माने।।
झुकती  जाए क्षीण कमरिया।
पौष माघ -सी .....

पिंजरे   में   पंक्षी    तड़पाये।
वसन बदलने   को  तरसाये।।
है चाहत पर उड़ा   न  जाये।
पुनर्जन्म  का  अवसर  पाये।।
कब मिलनी है नई नगरिया।।
पौष माघ -सी .....

💐 शुभमस्तु !
✍🏼©रचयिता
☘  डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम" 

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