शनिवार, 29 दिसंबर 2018

धरती माँ [बाल कविता ]

धरती माँ  धीरज  सिखलाती।
पग -पग पर चंदन बन जाती।।

लिया  गोद  में  जब   जन्माये,
नवशिशु को कोई कष्ट न आये,
स्नेह- धूलि  तन  से  लिपटाती,
धरती माँ ...

घुटरुन   अपनी  देह   चलाया,
स्थिर    होना   धरा   सिखाया,
गिरने  पर  -माँ  तुझे   उठाती,
धरती  माँ ....

दौड़े  -   कूदे     उछले    ऊपर,
गड्ढे -   कूप     खोदते     भूपर ,
पर धारिणी सब कुछ सह जाती,
धरती माँ ....

कीचड़   नाले   नाली   नदियाँ,
बीती   लाख   करोड़ों  सदियाँ,
तनिक न मैल  हृदय  में लाती,
धरती माँ....

आजीवन  हम बालक माँ  के,
उऋण न  होंगे धरती   माँ से,
'शुभम' अंत में अंक  सुलाती,
धरती माँ  धीरज  सिखलाती।

💐शुभमस्तु !
✍🏼 रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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