धरती माँ धीरज सिखलाती।
पग -पग पर चंदन बन जाती।।
लिया गोद में जब जन्माये,
नवशिशु को कोई कष्ट न आये,
स्नेह- धूलि तन से लिपटाती,
धरती माँ ...
घुटरुन अपनी देह चलाया,
स्थिर होना धरा सिखाया,
गिरने पर -माँ तुझे उठाती,
धरती माँ ....
दौड़े - कूदे उछले ऊपर,
गड्ढे - कूप खोदते भूपर ,
पर धारिणी सब कुछ सह जाती,
धरती माँ ....
कीचड़ नाले नाली नदियाँ,
बीती लाख करोड़ों सदियाँ,
तनिक न मैल हृदय में लाती,
धरती माँ....
आजीवन हम बालक माँ के,
उऋण न होंगे धरती माँ से,
'शुभम' अंत में अंक सुलाती,
धरती माँ धीरज सिखलाती।
💐शुभमस्तु !
✍🏼 रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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