गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

मानव सुधर जाओ [ गीत]

जातियाँ     जाती     रहेंगीं,
भ्रांतियां    छाती    दहेंगीं,
शांति   को   ढाती  बहेंगीं,
आत्मस्तुति     ही  कहेंगीं,
जाति से  छोटा-बड़ा क्यों,
मानव     सुधर      जाओ।
               
खून का  रंग  लाल सबका ,
आदान में नहिं भेद लखता,
आत्मा   का   रंग    सबका -
एक          ही         दिखता,
नर-रक्त के प्यासे बने क्यों ,
मानव       सुधर     जाओ।

एकता    के    गीत   गाते ,
टूटते    नित    मीत  जाते,
संकीर्णता मन   में बसाते,
उच्चता   का   ढोंग  लाते,
व्यर्थ है अभिनय तुम्हारा,
मानव     सुधर    जाओ।

जाति  से  नेता बँधा  क्यों,
जाति  से वोटर सधा क्यों,
देशहित की बात यों -क्यों ,
मात्र सत्ता  से  सधा  ज्यों,
पाखंड  है सारी सियासत,
मानव     सुधर      जाओ।

बातें  बड़ी और काम छोटे,
इधर   मंदिर     उधर कोठे,
निर्धन हितैषी? धनिक मोटे,
आम  चूसा    भाव    खोटे,
खुल गई    है   पोल  सारी,
मानव     सुधर      जाओ।

मिट्ठू मियाँ जी बन गए हो ,
बैठ   ऊपर   तन   गए    हो,
कीचड़ -उछाली में  लगे हो,
यह बता   किसके सगे हो !
मात्र    सत्ता - वासना    है,
मानव     सुधर       जाओ।

दूसरों     में       दोष  सारे,
निज  गरेबाँ   झाँक   प्यारे,
दूध  की  सरिता -  किनारे ,
न्हा   रहे     नेता       हमारे,
चरण    गंगाजल    पखारे,
मानव      सुधर      जाओ।

श्रेष्ठ  हो  फिर क्यों  भिखारी,
नेकनीयती     क्यों   प्रचारी !
दिख   रहे     कुर्सी - पुजारी,
अब याद   आई   है  हमारी?
"शुभम"   सोचकर   आओ,
मानव     सुधर       जाओ ।

💐 शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता  ©
🇮🇳 डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"

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