मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

मौसम बदल रहा है [सर्पकुण्डली राज छन्द में]

●  तेवरी ●
अब   ठंड आ रही है,
मौसम बदल   रहा है।
मौसम   बदल  रहा है,
कोहरा सँभल   रहा है।
कोहरा  सँभल  रहा है,
कम्बल   रजाई  भाते।
कम्बल   रजाई  भाते ,
अँधियारा सघन रहा है।
अँधियारा  सघन रहा है,
लंबी    हैं    शीत   रातें।
लंबी    हैं   शीत    रातें,
निर्धन  सिकुड़  रहा है।
निर्धन  सिकुड़  रहा  है,
धनिकों का प्यारा जाड़ा,
धनिकों का प्यारा जाड़ा,
तेवर   बदल    रहा    है।
तेवर   बदल    रहा    है,
तिलकुट्टी ग़ज़क  आई।
तिलकुट्टी  ग़ज़क  आई,
शकरकंद  महक रहा है।
शकरकंद  महक रहा  है,
जरसी औ' कोट   निकले।
जरसी  औ' कोट  निकले ,
टोपा  भी  मचल  रहा है।
टोपा भी  मचल  रहा  है,
फैशन का उनको चस्का।
फैशन का  उनको  चस्का,
बस ब्लाउज़ महक रहा है।
बस ब्लाउज़ महक रहा है,
पहने  न    गरम   कपड़े।
पहने  न    गरम   कपड़े,
कि  जाड़ा   चल  रहा है।

💐शुभमस्तु!
✍🏼रचयिता ©
डॉ.भगवत स्वरूपन"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...