वर्ष 1976 की बात है। उस समय मैं अपने गुरुजी परम् पूज्य डॉ. राजकिशोर सिंह जी (प्रोफेसर आगरा कालेज, पश्चात प्राचार्य के आर कालेज , मथुरा , तदुपरांत सदस्य लोक सेवा आयोग उ.प्र.) के निर्देशन में सनुसन्धितसु था। साथ ही उच्च शिक्षा में शिक्षक बनने के लिए साक्षात्कारों में भी जा रहा था। एक साक्षात्कार में दिल्ली के एक मित्र से नया परिचय हुआ। उनकी बाबा नागार्जुन जी से अच्छी जानकारी थी। उनके आमंत्रण और उनसे मिलवाने के वादे के अनुसार मैं पहली बार ही दिल्ली गया और उन्ही मित्र महोदय के यहाँ ठहरा।
प्रातःकाल वे मुझे बाबा नागार्जुन जी से मिलवाने के लिए उनके आवास पर ले गए। जब बाबा को मैने पहली बार देखा तो प्रथम दृष्टि में ही उनसे प्रभावित हो गया। मैने उनके चरण स्पर्श किए और परिचय दिया।वे बहुत सौम्यता और गौरव से मिले। उनके खिचड़ी बाल , सिर के बाल बढ़े हुए, खद्दर का कुर्ता , खद्दर का ही पाजामा, पैरों में चप्पल। बहुत ही सादगी और मिलनसारिता पूर्ण लगा उनसे मिलना। लगा ही नहीं कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूँ। मेरे स्वागत में वे बूंदी के लड्डू लेकर आए। औऱ बड़े ही स्नेह से उन्होंने एक लड्डू प्लेट से उठाकर मुझे खिलाने लगे तो मैं उनके स्नेह से अभिभूत हो गया।
फिर उन्होंने आने का उद्देश्य पूछा। मैने बताया कि बाबा आपके समस्त उपन्यास साहित्य पर शोध कर रहा हूँ। तो उन्होंने कहा कि मैं इसमें क्या मदद कर सकता हूँ? मैंने कहा बाबा आपके दर्शन की प्रबल इच्छा से ही आपके पास आया हूँ। ये मेरे मित्र हैं , जिनकी कृपा से आपसे मिल पा रहा हूँ। आपके उन्यास साहित्य कद संबंध में कुछ जानकारी भी कर लूँगा। उन्होंने पूछा कि टॉपिक क्या है? मैंने बताया - "नागार्जुन के उपन्यासों में आँचलिक तत्त्व " मेरे शोध का विषय है बाबा। तब वेद बोले कि पूछो। उसके बाद लगभग आधा घंटे तक उनके उपन्यास लेखन पर कई प्रकार के प्रश्नों के समाधन लिया। बाबा की सादगी, विनम्रता , विद्वत्ता और आत्मीयता ने मुझे अंदर तक अभिभूत कर दिया।
बाबा जी ने कुछ कविताएँ भी सुनाईं , जो उन्होंने उनके पास आई हुई चिट्ठियों के लिफाफों को खोलकर लिखी हुई थीं। वे कागज के एक टुकड़े को भी व्यर्थ नहीं फेंकते थे। तमाम कविताओं को छोटे -छोटे कागज़ के टुकड़ों पर लिखा देखा तो मुझे मितव्ययता का सबक सीखने को मिला,कि किस प्रकार एक बेकार चीज़ को भी काम में लेकर उसकी उपादेयता बढ़ाई जा सकती है। ऐसी महान विभूति को मैं शृद्धापूर्वक बार-बार नमन करता हूँ। बाबा एक दिव्य विभूति औऱ देश के महान साहित्यकार थे। मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थक बाबा नागार्जुन का व्यक्तित्व निश्चय ही प्रातः स्मरणीय है।
💐शुभमस्तु !
✍🏼 लेखक ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
प्रातःकाल वे मुझे बाबा नागार्जुन जी से मिलवाने के लिए उनके आवास पर ले गए। जब बाबा को मैने पहली बार देखा तो प्रथम दृष्टि में ही उनसे प्रभावित हो गया। मैने उनके चरण स्पर्श किए और परिचय दिया।वे बहुत सौम्यता और गौरव से मिले। उनके खिचड़ी बाल , सिर के बाल बढ़े हुए, खद्दर का कुर्ता , खद्दर का ही पाजामा, पैरों में चप्पल। बहुत ही सादगी और मिलनसारिता पूर्ण लगा उनसे मिलना। लगा ही नहीं कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूँ। मेरे स्वागत में वे बूंदी के लड्डू लेकर आए। औऱ बड़े ही स्नेह से उन्होंने एक लड्डू प्लेट से उठाकर मुझे खिलाने लगे तो मैं उनके स्नेह से अभिभूत हो गया।
फिर उन्होंने आने का उद्देश्य पूछा। मैने बताया कि बाबा आपके समस्त उपन्यास साहित्य पर शोध कर रहा हूँ। तो उन्होंने कहा कि मैं इसमें क्या मदद कर सकता हूँ? मैंने कहा बाबा आपके दर्शन की प्रबल इच्छा से ही आपके पास आया हूँ। ये मेरे मित्र हैं , जिनकी कृपा से आपसे मिल पा रहा हूँ। आपके उन्यास साहित्य कद संबंध में कुछ जानकारी भी कर लूँगा। उन्होंने पूछा कि टॉपिक क्या है? मैंने बताया - "नागार्जुन के उपन्यासों में आँचलिक तत्त्व " मेरे शोध का विषय है बाबा। तब वेद बोले कि पूछो। उसके बाद लगभग आधा घंटे तक उनके उपन्यास लेखन पर कई प्रकार के प्रश्नों के समाधन लिया। बाबा की सादगी, विनम्रता , विद्वत्ता और आत्मीयता ने मुझे अंदर तक अभिभूत कर दिया।
बाबा जी ने कुछ कविताएँ भी सुनाईं , जो उन्होंने उनके पास आई हुई चिट्ठियों के लिफाफों को खोलकर लिखी हुई थीं। वे कागज के एक टुकड़े को भी व्यर्थ नहीं फेंकते थे। तमाम कविताओं को छोटे -छोटे कागज़ के टुकड़ों पर लिखा देखा तो मुझे मितव्ययता का सबक सीखने को मिला,कि किस प्रकार एक बेकार चीज़ को भी काम में लेकर उसकी उपादेयता बढ़ाई जा सकती है। ऐसी महान विभूति को मैं शृद्धापूर्वक बार-बार नमन करता हूँ। बाबा एक दिव्य विभूति औऱ देश के महान साहित्यकार थे। मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थक बाबा नागार्जुन का व्यक्तित्व निश्चय ही प्रातः स्मरणीय है।
💐शुभमस्तु !
✍🏼 लेखक ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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