-1-
सूरज निकलता समय से,
एक पल देरी नहीं।
चलता अकेला शून्य में,
उषा विदाई दे रही।।
दिन - रात बढ़ता अनथके ,
परिवाद (वह) करता नहीं।
समय का जो ध्यान रखता,
हर समय उसका सही।।
-2-
मैं हूँ धरती धारयित्री ,
विश्व का आधार हूँ।
सीख लो हे धीर मानव,
अनवरत रसधार हूँ।।
खोदते तुम कूप गड्ढे,
मौन मैं सहती सदा ।
आह तक भरती नहीं मैं,
टोकती तुमको कदा।।
-3-
स्वांस में है वास मेरा,
जीव तेरा प्राण हूँ।
जीव' का आधार हूँ मैं ,
अस्तित्व का मैं त्राण हूँ।।
वात से जीवन जगत का,
मारुति प्रभंजन वायु मैं।
जीवन - मरण का प्रश्न मैं,
ज़िंदगी की आयु मैं।।
-4-
देह में, निधि , नयन में हूँ,
तरु, लता में मैं बसा।
मेघ, मारुत , मेदिनी में,
ममताभ मैं जल रिसा।।
हर रंग में , हर संग में,
चाल में या ढाल में।
ढलता हूँ मैं हर पात्र में,
देश में या काल में।।
-5-
न रंग मेरा न रूप ही,
मुझमें समाए हैं सभी।
सूरज ,धरा, शशि, गृह सभी,
बाहर न मुझसे ये कभी।।
व्यापक बनो मेरे सदृश,
संकीर्णता का त्याग कर।
आकाश मैं तू क्षुद्रता के,
रूप का परित्याग कर।।
-6-
इस सृष्टि के हर सृजन में,
है मेरी भी भूमिका ।
आग के बिन तेज का,
अस्तित्व मिटता शून्यता।।
भानु की किरणें दिवस की,
ये उज्ज्वला सित भव्यता।
जठराग्नि दावानल निधि में,
बसती 'शुभम' है दिव्यता।।
💐शुभमस्तु!💐
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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