रविवार, 9 दिसंबर 2018

सृष्टि सृजेता [गीतिका]

-1-
सूरज    निकलता  समय  से, 
एक     पल       देरी    नहीं।
चलता    अकेला    शून्य  में,
उषा     विदाई     दे     रही।।
दिन - रात   बढ़ता  अनथके ,
परिवाद  (वह)   करता  नहीं।
समय   का  जो ध्यान रखता,
हर    समय     उसका  सही।।

-2-
मैं     हूँ      धरती    धारयित्री ,
विश्व    का        आधार     हूँ।
सीख   लो  हे     धीर   मानव,
अनवरत        रसधार      हूँ।।
खोदते   तुम       कूप     गड्ढे,
मौन    मैं       सहती     सदा ।
आह  तक     भरती   नहीं  मैं,
टोकती      तुमको       कदा।।

-3-
स्वांस   में   है      वास  मेरा,
जीव       तेरा      प्राण    हूँ।
जीव'   का     आधार   हूँ  मैं ,
अस्तित्व    का  मैं   त्राण  हूँ।।
वात  से    जीवन   जगत का,
मारुति    प्रभंजन   वायु  मैं।
जीवन  - मरण  का    प्रश्न मैं,
ज़िंदगी      की      आयु   मैं।।

-4-
देह में,  निधि ,  नयन  में हूँ,
तरु,   लता   में    मैं    बसा।
मेघ,    मारुत ,   मेदिनी  में,
ममताभ   मैं   जल   रिसा।।
हर    रंग   में , हर   संग  में,
चाल    में    या    ढाल   में।
ढलता   हूँ    मैं  हर  पात्र में,
देश    में     या     काल  में।।

-5-
न    रंग   मेरा   न  रूप  ही,
मुझमें     समाए    हैं   सभी।
सूरज ,धरा, शशि, गृह सभी,
बाहर   न   मुझसे   ये कभी।।
व्यापक   बनो    मेरे   सदृश,
संकीर्णता    का   त्याग कर।
आकाश    मैं   तू  क्षुद्रता के,
रूप   का  परित्याग    कर।।

-6-
इस   सृष्टि  के  हर सृजन में,
है      मेरी     भी    भूमिका ।
आग     के  बिन    तेज  का,
अस्तित्व   मिटता   शून्यता।।
भानु   की   किरणें दिवस की,
ये   उज्ज्वला   सित भव्यता।
जठराग्नि   दावानल निधि में,
बसती 'शुभम' है दिव्यता।।

💐शुभमस्तु!💐
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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