मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

गौरेया के बच्चे [ बाल कविता]

मेरे  घर  की  घनी   बेल में
रहता   गौरेया   का  जोड़ा।
तिनके घास फूस ला लाकर
किया  इकट्ठा  थोड़ा-थोड़ा।।

पत्तों के  झुरमुट  के  अन्दर
बना लिया है सुघर  घोंसला।
दाना - पानी      खाते - पीते 
देखा  उनका  बड़ा  हौसला।।

रहते   बड़े     प्रेम  से   दोनों 
जेठ मास   की गरमी पड़ती।
दो   प्यारे    चितकबरे   अंडे
देकर चिड़िया उड़ती-फिरती।।

कुछ  दिन बाद कान  में आए
चूँ चूँ   चें चें  के स्वर सुमधुर।
दो से    चार  हो    गए   दोनों 
हम  बच्चे  तब  झाँके  ऊपर।।

नर -मादा   दोनों   उड़ -उड़कर
दाना   - पानी     लेकर    आते।
चोंच खोल अरुणिम दो शावक
अपनी    गर्दन  उधर    बढ़ाते।।

बसा  नया    परिवार    देखकर
बच्चे  नाच   -  कूदकर    गाते।
बस्ता उधर रखा ,खग -शावक-
के  सँग में मन -  मोद  मानते।।

मम्मी     हमें    गोद    में    लेकर
चिड़िया  के   बच्चे   दिखला दो।
कितने    प्यारे   हैं   खग -शावक
शुभम" घोंसले तक उचका दो।

💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...