मेरे घर की घनी बेल में
रहता गौरेया का जोड़ा।
तिनके घास फूस ला लाकर
किया इकट्ठा थोड़ा-थोड़ा।।
पत्तों के झुरमुट के अन्दर
बना लिया है सुघर घोंसला।
दाना - पानी खाते - पीते
देखा उनका बड़ा हौसला।।
रहते बड़े प्रेम से दोनों
जेठ मास की गरमी पड़ती।
दो प्यारे चितकबरे अंडे
देकर चिड़िया उड़ती-फिरती।।
कुछ दिन बाद कान में आए
चूँ चूँ चें चें के स्वर सुमधुर।
दो से चार हो गए दोनों
हम बच्चे तब झाँके ऊपर।।
नर -मादा दोनों उड़ -उड़कर
दाना - पानी लेकर आते।
चोंच खोल अरुणिम दो शावक
अपनी गर्दन उधर बढ़ाते।।
बसा नया परिवार देखकर
बच्चे नाच - कूदकर गाते।
बस्ता उधर रखा ,खग -शावक-
के सँग में मन - मोद मानते।।
मम्मी हमें गोद में लेकर
चिड़िया के बच्चे दिखला दो।
कितने प्यारे हैं खग -शावक
शुभम" घोंसले तक उचका दो।
💐शुभमस्तु !
✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"
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