शनिवार, 3 सितंबर 2022

चोरी का गुड़ ज्यादा मीठा ! [ व्यंग्य ]

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 ✍️ शब्दकार © 

 🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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 मेरा विचार है कि 'असंतोष' आदमी का पर्यायवाची शब्द होना चाहिए।इस धरती पर आदमी के विकास, प्रगति, समृद्धि, अति समृद्धि,अपार समृद्धि ,अकूत समृद्धि,ख्याति ,कुख्याति जैसी विषज्ञताओं के पीछे उसका 'असंतोष'ही है। यदि उसे अपने धन- संपत्ति, व्यवसाय,नौकरी, घर,मकान, दुकान ,होटल,कारखाने आदि से संतोष होता ,तो आज संसार का नक्शा कुछ और ही होता।

 कहावत है कि चोरी का गुड़ कुछ ज्यादा ही मीठा होता है। इसीलिए कोई नमक की चोरी नहीं करता।उसके भरे हुए बड़े-बड़े बोरे दुकान बंद करने कर बाद भी उसे बाहर पड़े छोड़ दिए जाते हैं ;किंतु गुड़ की एक भी भेली बाहर नहीं छोड़ी जाती।उसकी चोरी होने का खतरा जो है,इसलिए उसे तालों में बंद करके सुरक्षित रखा जाता है। परंतु जिन्हें चोरी का गुड़ खाने का चसका लग चुका होता है ,वे उसे चुराने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं।

 दूसरे की बीबी और दूसरे की कमाई सबको ज्यादा सुंदर और बेहतर लगती है।उसके मन में अपने से तुलना का भाव निरंतर जागता रहता है।इस तुलनात्मक भाव का परिणाम यही होता है कि उसे वे बेहतर ही लगते हैं।इसलिए उसे चोरी - चोरी देखने या हिम्मत हो तो चुराने की हिम्मत करके अपने असंतोष को संतोष में बदल लेता है।स्व - आय से भी प्यारी 'अन्य -आय' के अर्जन को वह अन्याय नहीं मानता। अपने को तोलने- नापने के उसके पैमाने अलग -अलग हैं। इसलिए प्रेमपूर्वक उत्कोच स्वीकार कर तिजोरियों में नहीं, वरन तहखानों ,कमरों ,शौचालयों, दीवारों आदि में सुरक्षित रखता हैं।वह भूल जाता है कि जब पड़ेगा छापा, तब याद आएंगे बापा। 

नित्य निरंतर चर्चा में आने वाले गबनी, चोर ,डकैत, मिलावटी, कम नाप - तौल कर व्यवसाय करने वालों से टीवी, अख़बार सोशल मीडिया आदि चटखारे ले लेकर उनका प्रचार करते देखे जाते हैं ,जो अन्य भावी असन्तोषी जन के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।अपने क्रय किए गए खेत या प्लॉट से बाहर फ़सल उगाना या अतिक्रमण कर मकान दुकान का निर्माण करना,दूसरे कृषक की मेड़ या खेत जोत लेना इस 'असन्तोषी' की साहसपूर्ण शान की बात मानी जाती है। गुड़ तो वैसे भी स्वाभाविक रूप से मीठा ही होता है ,किन्तु यदि चुराकर मिले तो क्या कहने !चोरी के गुड़ की मिठास कई गुणा बढ़ जाती है।उत्कोच लेने वाला उत्कोच देकर मुक्ति पा लेता है।100 करोड़ के उत्कोच की मुक्ति की कीमत दस बीस करोड़ से भी ज्यादा क्या होगी? जब काजल की कोठरी में सब काजल - ब्रांड ही निवास करते हैं तो क्या राजनेता औऱ क्या अन्य अधिकारी ? सबको एक ही बीमारी : 'अन्य -आय' ,चोरी का गुड़ । फिर क्या कुछ दिन के ड्रामे के बाद पटाक्षेप ।गोबर के ऊपर मोटी- मोटी क्रीम का सुगंधित इत्रमय लेप।फाइनल रिपोर्ट।केस क्लोज्ड।

  रग -रग में बहता हुआ भ्रष्टाचार का रक्त ,घोषित कर रहा है ऐसों को महान देश भक्त।फिर क्यों न हों भावी कर्णधार उन पर अनुरक्त। आगे  गुरु ,पीछे - पीछे चेला। इन्हीं तो फल फूल रहा है देश भर में मेला। जिस देश के तथाकथित 'भक्तों' को तीन दिन को तिरंगा आदेश तीस दिन तक भी स्मरण न रहे , उनसे चोरी के गुड़ की अपेक्षा ही की जा सकती है। उनका आजादी का मतलब अब समझ में आ गया है। पूरा देश इस परीक्षा में फेल हो गया है। इसीलिए फटे, मैले बेहिसाब झंडे उनके ट्रैक्टरों, छतों, बाइकों, कारों,ट्रकों,वाटर टैंकों पर लहरा -फहरा रहे हैं। क्या यही राष्ट्र ध्वज का उचित सम्मान है ? यह भी चोरी का गुड़ ही है ,जो उन्हें महान राष्ट्र भक्त होने का स्वाद दे रहा है।  अब यह सत्य भी उजागर हो गया है कि ये देश इतने वर्षों तक क्यों गुलाम रहा ? जब सारे कुओं में ही भाँग घुली हुई है ,तो नशे से बचा भी कैसे जा सकता है। गुड़ ,वह भी भाँग वाला , सोने में सुहागा सिद्ध हो रहा है।

 'भ्रष्टाचार के हीमोग्लोबिन' के बिना 'असंतोषी' के जीवन की कल्पना भी कैसे की जा सकती है! नस - नस में बहने वाला ये हीमोग्लोबिन ही तो उसके बनाए रखने का मुख्य तत्त्व है। इसे बाजार से खरीदा नहीं जाता।कहना यह चाहिए कि बाजार ही हीमोग्लोबिन का है।यत्र -तत्र - सर्वत्र वही छाया हुआ है।ईमानदारी की पूँछ नहीं है। मूँछ तो हीमोग्लोबिन ने ही सूपड़ा साफ कर दी है।ईमानदारी की छूँछ अवश्य कहीं -कहीं दिखाई दे जाती है। और छूँछ का कोई अर्थ नहीं होता।इस हीमोग्लोबिन में गुड़ की भेली की मिठास से मधुमेह भी नहीं होता।बल्कि देह की सुर्खी में कई गुणा वृद्धि ही होती है।स्वदेश के पर चौर गुड़ प्रेमियों को धन्य -धन्य है कि भ्रष्टाचार के ग्राफ के उच्चीकरण के स्केल पर वे विश्व पटल पर सर्वोच्च स्थान पर अग्रसर होने के लिए निरन्तर अपने चरण बढ़ाते हुए देखे जा रहे हैं। 

 🪴 शुभमस्तु! ०२.०९.२०२२◆११.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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