375/2022
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✍️ शब्दकार ©
🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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रहते सँग - सँग जीव हमारे।
घर में निशि - दिन लगते प्यारे।।
मच्छर मक्खी नित के साथी।
रहते नहीं घरों में हाथी।।
खटमल कभी - कभी मिलता रे।
रहते सँग- सँग जीव हमारे।।
छिपकलियाँ नित गश्त लगातीं।
छत में रेंग - रेंग कर जातीं।।
चूहे बिल में रहते न्यारे।
रहते सँग - सँग जीव हमारे।।
छोटी - छोटी चुहियाँ सारी।
करें कुतर कर हानि हमारी।।
काट कुतर कर ग्रंथ उजारे।
रहते सँग - सँग जीव हमारे।।
चींटी - चीटों को क्यों भूलें?
वर्षा में मेढक भी ऊलें।।
जुगनू चमक रहे उजियारे।
रहते सँग - सँग जीव हमारे।।
देख ठिकाना नीड़ बनाती।
गौरैया परिवार बसाती।।
चिचियाते खग - शावक सारे।
रहते सँग -सँग जीव हमारे।
आते - जाते - कुत्ते, बिल्ली।
लिपटी हुईं देह से किल्ली।।
पीती खून, ढोर बेचारे।
रहते सँग -सँग जीव हमारे।।
गाय , भैंस , भेड़ें या बकरी।
दूधदायिनी नगला - नगरी।।
पी ले मट्ठा, घी, दधि प्यारे।
रहते सँग - सँग जीव हमारे।।
🪴शुभमस्तु !
२०.०९.२०२२◆१०.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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