मंगलवार, 20 सितंबर 2022

रहते घर में जीव हमारे 🦋 [ बालगीत ]

 375/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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रहते      सँग -  सँग      जीव हमारे।

घर   में   निशि - दिन    लगते प्यारे।।


मच्छर       मक्खी    नित    के  साथी।

रहते    नहीं         घरों       में   हाथी।।

खटमल      कभी  -  कभी मिलता  रे।

रहते       सँग- सँग        जीव हमारे।।


छिपकलियाँ      नित     गश्त लगातीं।

छत      में    रेंग - रेंग     कर  जातीं।।

चूहे       बिल       में      रहते   न्यारे।

रहते       सँग  -  सँग     जीव हमारे।।


छोटी    -     छोटी        चुहियाँ  सारी।

करें       कुतर     कर     हानि हमारी।।

काट      कुतर     कर       ग्रंथ  उजारे।

रहते       सँग - सँग         जीव हमारे।।


चींटी  -    चीटों      को    क्यों  भूलें?

वर्षा      में       मेढक      भी   ऊलें।।

जुगनू          चमक      रहे  उजियारे।

रहते       सँग - सँग      जीव हमारे।।


देख         ठिकाना     नीड़   बनाती।

गौरैया                परिवार   बसाती।।

चिचियाते          खग - शावक   सारे।

रहते        सँग -सँग        जीव  हमारे।


आते     -  जाते  -     कुत्ते,   बिल्ली।

लिपटी    हुईं      देह      से किल्ली।।

पीती          खून,         ढोर     बेचारे।

रहते       सँग -सँग      जीव    हमारे।।


गाय ,   भैंस ,    भेड़ें   या   बकरी।

दूधदायिनी           नगला  -  नगरी।।

पी ले     मट्ठा,   घी,    दधि   प्यारे।

रहते   सँग  -  सँग     जीव हमारे।।


🪴शुभमस्तु !


२०.०९.२०२२◆१०.०० पतनम मार्तण्डस्य।

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