गुरुवार, 22 सितंबर 2022

देश - देश नित गाता 🦩 [ गीत ]

 379/2022


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✍️ शब्दकार ©

🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बगुला  भक्त  शृंग  पर  बैठा,

देश - देश नित गाता।


एक टाँग  पर  खड़ा  पंक  में,

एक आँख को मींचे।

दृष्टि   लगाए   हुए  लक्ष्य  पर,

चोंच लार भर मींचे।।

बन तड़ाग का माली!

वार न जाए  खाली!!

मन में  चले  कर्तनी  चिकनी,

करनी पर इतराता।


बगुले   के   पीछे   भी  बगुले,

आगे भी  हैं   बगुले।

नाच   रहे   हैं   बैंड  बजाकर,

फेंक नए नित जुमले।।

श्वान  भौंकते   जैसे!

सभी भक्तगण वैसे!!

टोपी   श्वेत    सजाए   सारे,

सतराता  मदमाता।


मोर   मौन   कोकिल  है गूँगा,

गौरैया  क्या  बोले!

चातक प्यासा  स्वात बूँद को,

चंचु नहीं वह खोले।।

गर्दभ    घूरे   ठाड़े!

सीधे तिरछे आड़े!!

वन थलचर मनमानी में हैं,

बगुला मौज  मनाता।


अंधे     बहरे    उड़ने    वाले,

लगा   रहे  हैं  नारे।

होंठ   सिले      बैठे     बेचारे,

देख  दिवस में तारे।।

मनती सदा दिवाली !

गोरी हो  या  काली!!

'शुभम्'पंख रँग बनता साधक,

सदा गज़ब ही ढाता।


🪴शुभमस्तु!


२२.०९.२०२२◆११.००आ.मा.

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