385/2022
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✍️ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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ईश रहित क्या कण - कण होता?
ऐसा भी कोई क्षण होता??
सुखद शांति नित सद्भावों से,
दुर्भावों से ही रण होता।
मात - पिता गुरुजन से कोई,
मुक्त न मानव - ऋण - कण होता।
बाहर देख रहा तू मुखड़ा,
मन के भीतर दर्पण होता।
आते नहीं बुरे दिन तेरे,
प्रभु को सहज समर्पण होता।
सोच समझ जीवन - पथ पर चल,
नहीं दाँव का ये पण होता।
'शुभम्' भिन्न नर पशु - पक्षी से,
प्रभु - पद में उर अर्पण होता।
🪴शुभमस्तु !
२६.०९.२०२२◆७.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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