गुरुवार, 1 सितंबर 2022

गहरी बड़ी कहानी 🙉 [ गीत ]

 353/2022

  

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✍️ शब्दकार ©

⛲ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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समझ  रखा था  मैंने  उनको,

सच  के  वे  रखवाले।


एक - एक   की  पूँछ   उठाई,

निकले   बड़े  निराले,

उड़े  मुखौटे  जब   मुखड़े  से,

पड़े  जुबाँ  पर  ताले,

मिला  दूध  में पानी,

गहरी बड़ी  कहानी,

उर   से   गए   निकाले।


गगन  चूमती    मीनारों   को,

देख -  देख   दहलाए,

कितना  बहा  पसीना  होगा,

सोच   बहुत   चकराए,

संपति  थी   या  पानी,

समझ  न आया मानी,

आफत  के  परकाले।


सरकारी   जमीन  पर अपना,

कब्जा   कर  हथियाया,

महल दुमहला बहु मंजिल का

ऊँचा    ठाठ    सजाया,

सजीं    दुकानें    ऊँची,

गगन  तनी मुछ - कूँची,

खाते  स्वर्ण -  निवाले।


सच को सच होते जब पाया,

खुलीं  नींद   से  आँखें,

जो चिकना-चुपड़ा दिखता है,

मिटती   देखीं    शाखें,

गोबर     को    चमकाया,

आज  समझ  में   आया,

फूट   गए  पग -  छाले।


🪴 शुभमस्तु !


०१.०९.२०२२◆४.१५ 

पतनम मार्तण्डस्य।

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