गुरुवार, 29 सितंबर 2022

हम महान! हमारा देश महान!🙉 [ व्यंग्य ]

 391/2022


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✍️ व्यंग्यकार ©

⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अपनी पीठ आप ही थपथपाना हमारा स्वभाव है।जिसे मुहावरेदार भाषा में कहें तो कहा जायेगा तो मियाँ मिट्ठू बनना ही कहेंगे।हम अपने समाज, देश और राष्ट्र की परंपराओं और मनमानियों को महान मानने के आदी हैं।इसीलिए हम महान देश के महान नागरिक हैं।अब जब हमारा देश महान है ,तो हम भी इसी देश के वासी होने के नाते महान ही हुए।हमारी हजारों लाखों महानताओं  के हजारों लाखों निदर्शन परोसे जा सकते हैं ,जो हमारी बहुमुखी गौरव वृद्धि में चार नहीं चौवन चाँदों की चाँदनियों का चमत्कार चमका सकते हैं।

धरती से आसमान तक और सागर से पर्वत तक ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है ,जहाँ हमारी 'महानता' न बरसती हो!अब ज्यादा पीछे औऱ दूर जाने की आवश्यकता नहीं है कि अभी कुल जमा डेढ़ महीने पहले की ही बात है कि सरकार नेतेरह से पंद्रह अगस्त तक देश की  स्वाधीनता की स्वर्ण जयंती के शुभ अवसर पर प्रत्येक भारतीय को अपने घर,वाहन आदि पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए अनुमत किया था।किंतु इसका परिणाम क्या निकला?वह हम सबके सामने है।वे तिरंगे झंडे आज तक ससम्मान उतारे नहीं गए हैं। झंडा फहराना एक पावन पर्व नहीं, शौक बनकर कर आदमी की मनमानी का प्रतीक बन गया है।लोगों की छतों, पानी की टंकियों, ट्रैक्टरों,मेटाडोरों, ऑटो रिक्शाओं, ट्रकों आदि पर आज तक लहरा फहरा रहे हैं। जिस देश के नागरिकों को अपने कर्तव्यों का भान तक नहीं ,वहाँ ज्ञान का  भानु   भला कैसे उदित हो सकता है? देश के 'महान'वासियों की 'महानता' का इससे अच्छा नमूना भला मिलेगा भी कहाँ? झंडा फैशन होकर रह गया है। 

इस महान देश में बिना कुर्सी के  न तो समाज सेवा हो सकती है और न ही देश सेवा। इसलिए कुर्सी पाने के लिए कितने भी नीचे उतर जाने में सेवार्थीयों को कोई हिचक नहीं होती।सेवा से मेवा मिलती है, यह भला कौन नहीं जानता! लेकिन दिखाया यही जाता है कि हम तो तन, मन और स्व- धन से भी देश ,धर्म और समाज की सेवा करने को अहर्निश तत्पर हैं। यही समाज और देश सेवक कुछ ही अवधि में खाक से लाख करोड़ में गिल्ली - डंडा खेलने लगते हैं।

धोती कुर्ता ,साड़ी ब्लाउज के युग से लेकर हमने आज 'कपड़े-फाड़ -फैशन'  के युग में धड़ल्लेदार एंट्री कर ली है।अब शील,सादगी और सदाचार पिछड़ेपन की निशानी मानी जाने लगी है।इसलिए  'देह दिखाऊँ' प्रदर्शन की होड़ में हमने पश्चिम को भी पीछे छोड़ दिया है। नंगापन हमारी अत्याधुनिकता औऱ फेशनीय   प्रतियोगिता का मानदंड है। जो जितना देह से नंगा है ,उतना ही प्रगतिशील और महान है।अपनी परम्परागत संस्कृति औऱ सभ्यता को पीछे छोड़कर 'घुटना छू' सभ्यता हमारे गौरव गान का    महाचरण है।अपनी भाषा और  मातृभाषा को छोड़कर अंग्रेज़ी बोलना या दो चार शब्दों के  अधकचरे ज्ञान के बल पर काला अंग्रेज बनने   में हमें शर्म नहीं आती।वह गिटपिट ही हमारी योग्यता का मानक है। 

मुझे  स्वदेश में ऐसा कोई क्षेत्र दिखाई नहीं देता है ,जहाँ हमारी 'महानता' के डंके बजते हुए सुनाई न दे रहे हों। शाकाहारी से मांसाहारी होना, मधुशाला की शोभा बढ़ाना या घर को ही मधुशाला बना देना भी हमारी महानता के महत्त्व को  बढ़ाता है।निरन्तर बढ़ते हुए वृद्धाश्रम  देश की 'महान' 'आज्ञाकारी संतानों? और उनकी 'देवी? स्वरूपा' पत्नियों के 'महान' चरित्र की दुंदुभी बजाता हुआ विश्व विख्यात है।विवाह होते ही देश की  ये महान 'देवियां?' अपने सास- ससुर को बर्दाश्त नहीं कर पातीं। इसलिए वे उन्हें बाहर का रास्ता दिखाते हुए अपना विलासिता पूर्ण जीवन निर्विघ्न रूप से बिताती हैं।देश के नागरिको की 'महानता' के जितने भी गीत गाए जाएँ, कम ही हैं।

हमारी 'धर्म भीरुता' में हमसे कुछ भी करवाया जा सकता है। यहाँ तक कि रोग,भूत ,प्रेत, जिन्न,सबका समाधान यहाँ टोने-टोटके और ताबीजों के बीजों में अंकुरित होता है।ये क्या कुछ कम 'महानता' की बात है,जहाँ मेडिकल साइंस भी असफल हो जाए, वहाँ हमारे तांत्रिक ,यांत्रिक ,मांत्रिक ही रोगों को छूमंतर कर दें।लाखों का काम चुटकी भर भस्मी भभूत से हो जाए औऱ भूत का पूत तो क्या दादा परददा भी हमेशा के लिए विदा हो जाएँ,इससे महान उपलब्धि और क्या होगी? धर्म की अफ़ीम ने जनता जनार्दन को क्या कुछ नहीं दिया। ये वह सिंहासन है जहाँ बड़े -बड़े राजे - महाराजे आई.ए. एस. ;पी .सी.एस. भी  नतमस्तक हैं।दंडवत प्रणाम करते हैं और चुनाव जीतने के लिए उनके पाँव धो -धो कर पीते हुए देखे नहीं जाते ,छिप-छिपाकर पी आते हैं। 

इस महान देश की उर्वरा भूमि में नेता सदैव से 'महान' ही पैदा हुए, हो रहे हैं और यही हाल रहा तो होंगे भी।विधान नियामक होकर भी विधान भंग उनका नित्य का नियमित नियम है।पहले स्वयं, उनका परिवार,  इष्ट मित्र ,जाति  और बाद में कुछ और।पहले अपनी सत्रह पीढ़ियों का पूर्ण प्रबंध प्राथमिकता में होना ही है। वे भी तो देश के आदर्श नागरिक हैं , यदि वे स्व-उदर पोषण ,शोषण ,चूषण के लिए कुछ 'इधर - उधर' कर लेते हैं ,तो बुरा ही क्या है!यह भी तो देश सेवा ही है। 

देश की जनता शिक्षित हो या न हो ,इसकी चिंता वे क्यों करें। उन्हें तो अपनी संतति को विदेश में पढ़ने- लिखने का पूरा इंतजाम करना है।तथ्य तो यही है कि जनता जितनी पिछड़ी , निरक्षर ,रूढ़िवादी हो उतना ही अच्छा।इससे देश में नेतागिरी चमकाने का सुअवसर मिलता है औऱ पिछलग्गू जनता गड्ढे खोदने, बल्लियाँ गाड़ने ,बैनर लटकाने ,दरियां बिछाने,टेंट लगाने, प्रचार करने जैसे महान कार्यों में लगी रहती है।जब नारों से   ही बहारों का प्रबन्ध हो जाए , फिर और कुछ करने की आवश्यकता भी क्या है ? राजनीति वह मीठी मादक माधुरी है कि हर व्यक्ति इसे बुरा बताकर भी इससे गलबहियाँ करने को सुमत्सुक दिखाई देता है। यह राजनीति की 'महानता ' का 'महान' प्रमाण है।

सारांशत: यही कहा जा सकता है कि  ',महानता' हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है;जिसे हमसे कोई भी नहीं छीन सकता। हर क्षेत्र में हमने अपनी प्रचंड 'महानता' के अखंड झंडे गाड़े हैं, भले ही गाड़कर उन्हें गलने ,सड़ने, उड़ने और उधड़ने के लिए उनके अपने ही डंडे के सहारे छोड़ दिया हो।हमें उन्हें पुनः उन्हें मुड़कर देखने की फुर्सत ही कहाँ है ? हम तो वहीं हैं ,जहाँ हमारे भारतवर्ष की आत्मा है। अब आत्मा तो अदृश्य,अविनाशी, सूक्ष्म औऱ सारे देश - गात में व्याप्त है।उसे खोजने की कोशिश भी मत करना।हम सब महान हैं, तो हमारा देश हमारे ही बलबूते पर  महान है।

🪴 शुभमस्तु !

२९.०९.२०२२◆ १२.३० पतनम मार्तण्डस्य।

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