380/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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गोल - गोल रोटी के
चारों ओर
चक्कर लगाता संसार,
सबसे अधिक उसे
रोटी से प्यार,
शेष सब
रोटी के बाद,
रोटी की ही
सर्वाधिक तकरार।
आदमी, आदमी के
खून का प्यासा !
क्या मात्र रोटी के लिए?
महल अट्टालिकाएं
कंचन नोटों के खजाने
क्या मात्र रोटी के लिए?
भरे हुए पेट वाले
कब बैठे हैं
शांति से?
रोटी के बहाने
भटके हैं
भ्रांति से।
सब जीते हैं
अपने - अपने ढंग से,
पेट का गड्ढा
रट लगाता है
और - औऱ के लिए,
कोई -कोई जीता है
अपनी सात -सात
पीढ़ी की रोटी के लिए,
क्या पता
उसकी भावी पीढ़ी
अकर्मण्य तो नहीं,
इसलिए वे
जमाते हैं उनके लिए
गाढ़ा - गाढ़ा दही।
पेट तो
कुत्ते भी भर लेते हैं,
परंतु कुछ निकम्मे
कुत्तों को भी
पीछे छोड़ देते हैं,
उन्हें अपने
पेट को भी
भरा नहीं जाता,
महाकुत्तेपन में
कोई कुत्ता उन्हें
हरा नहीं पाता!
परजीवी बनना
उनकी पहचान है,
निकम्मापन
उनका निशान है,
छीन कर
रोटी निगलने पर
उनका पूरा ध्यान है।
गोल- गोल रोटी
क्या कुछ नहीं कराती,
आदमी को आदमी से
हैवान बनाती,
मानव देह में
बैठा जो हुआ है
नरभक्षी भेड़िया,
एक नहीं
हजारों मिलते हैं,
जो अपनी रोटी के लिए
दूसरों को दलते,
निगलते हैं।
🪴 शुभमस्तु !
२२.०९.२०२२◆७.४५ प.मा.
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