390/2022
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✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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'झंडारोहण- परीक्षा'
हुई देशवासियों की,
परिणाम भी
देख लिया सबने,
पचास प्रतिशत से
भी अधिक
असफल ही रहे,
इनकी देशभक्ति की
'अति' की कौन कहे!
जानते नहीं
ये देश आजाद है !
कोई भी काम
करने की
क्या कोई मरजाद है?
कानों में तेल
आँखों पर हरी पट्टी,
यही तो गई है
पिलाई इन्हें जन्मघुट्टी!
टाँग दिया!
बस टाँग ही दिया,
तिरंगा घर की छत
ट्रैक्टर, जल टंकी पर,
दृष्टि क्यों जाएगी अब
ध्वज नोंचते हुए
मंकी पर,
झुके,फटे,मैले
तिरंगे ,
वर्षा- जल में नहा रहे
हर - हर गंगे,
बस यहीं पर
हम भारतीय हो लिए
ऊपर से नीचे तक
पूर्णतःनिर्वस्त्र नंगे!
क्या यही राष्ट्रभक्ति है?
तिरंगे के प्रति
अनुरक्ति है!
परीक्षा भी हो चुकी,
परिणाम है सामने,
खोल देख लें नयन,
क्या किया है आपने!
डेढ़ महीने के बाद
छत, टेम्पो, ट्रेक्टर पर
तिरंगा लहरा रहा है,
हिंदुस्तान का ये
'तथाकथित देशभक्त',
अंधा और बहरा रहा है!
अरे !देख भी ले
तेरी भी छत पर
सरकार का 'आदेश'
अभी भी गहरा रहा है।
राष्ट्रध्वज का अपमान!
देश का अपमान!
सो रहा भारतीय
लंबी-सी चादर तान,
जानता ही नहीं
राष्ट्रध्वज की
आचार संहिता,
लगा जो बैठा है
'स्व-सद्बुद्धि' को पलीता!
यही तो तेरे भविष्य का
दर्पण !
क्या यही है तेरा
देश को समर्पण ?
स्वाधीनता का है
अंध -चर्वण !
क्या कर ही दिया
श्राद्ध पक्ष में
स्व- विवेक का तर्पण ?
यह तो है एक निदर्शन,
अंधेरगर्दी का दर्पण ।
🪴 शुभमस्तु !
२९.०९.२०२२◆६.३०आरोहणम् मार्तण्डस्य।
✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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'झंडारोहण- परीक्षा'
हुई देशवासियों की,
परिणाम भी
देख लिया सबने,
पचास प्रतिशत से
भी अधिक
असफल ही रहे,
इनकी देशभक्ति की
'अति' की कौन कहे!
जानते नहीं
ये देश आजाद है !
कोई भी काम
करने की
क्या कोई मरजाद है?
कानों में तेल
आँखों पर हरी पट्टी,
यही तो गई है
पिलाई इन्हें जन्मघुट्टी!
टाँग दिया!
बस टाँग ही दिया,
तिरंगा घर की छत
ट्रैक्टर, जल टंकी पर,
दृष्टि क्यों जाएगी अब
ध्वज नोंचते हुए
मंकी पर,
झुके,फटे,मैले
तिरंगे ,
वर्षा- जल में नहा रहे
हर - हर गंगे,
बस यहीं पर
हम भारतीय हो लिए
ऊपर से नीचे तक
पूर्णतःनिर्वस्त्र नंगे!
क्या यही राष्ट्रभक्ति है?
तिरंगे के प्रति
अनुरक्ति है!
परीक्षा भी हो चुकी,
परिणाम है सामने,
खोल देख लें नयन,
क्या किया है आपने!
डेढ़ महीने के बाद
छत, टेम्पो, ट्रेक्टर पर
तिरंगा लहरा रहा है,
हिंदुस्तान का ये
'तथाकथित देशभक्त',
अंधा और बहरा रहा है!
अरे !देख भी ले
तेरी भी छत पर
सरकार का 'आदेश'
अभी भी गहरा रहा है।
राष्ट्रध्वज का अपमान!
देश का अपमान!
सो रहा भारतीय
लंबी-सी चादर तान,
जानता ही नहीं
राष्ट्रध्वज की
आचार संहिता,
लगा जो बैठा है
'स्व-सद्बुद्धि' को पलीता!
यही तो तेरे भविष्य का
दर्पण !
क्या यही है तेरा
देश को समर्पण ?
स्वाधीनता का है
अंध -चर्वण !
क्या कर ही दिया
श्राद्ध पक्ष में
स्व- विवेक का तर्पण ?
यह तो है एक निदर्शन,
अंधेरगर्दी का दर्पण ।
🪴 शुभमस्तु !
२९.०९.२०२२◆६.३०आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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