362/2022
[अंतर्मन,वातायन, वितान,विहान,विवान]
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✍️ शब्दकार©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🪷 सब में एक 🪷
अंतर्मन विकसित करें,जीवन करे विकास।
संभव मानव के लिए,समझें मत उपहास।।
अंतर्मन की चेतना, देती है निर्देश।
उठा 'शुभं'निज लेखनी,मिटा मनुज के क्लेश
उर - वातायन खोलकर,करना पर-उपकार।
उदर भर रहे श्वान भी, बनें न भू का भार।।
झाँका तेरे नेत्र के, वातायन में नेह।
कुछ-कुछ उर में तब हुआ,लगा बरसने मेह।
उर- वितान को तानकर,दें विस्तृत आकार।
शब्द-साधना तब करें,अंबर का विस्तार।।
अंबर एक वितान है,जिसमें जगत निवास।
उसमें ही सब लीन हो,उगकर मिटे उजास।।
नित विहान की रश्मियाँ, देतीं नव संदेश।
जाग, उठें, चलते रहें, धर सुखदाई वेश।।
आईं तुम मम गेह में,स्वर्णिम हुआ विहान।
जीवन में कुलगीत का,गूँज उठा शुभ गान।।
काली रजनी भाद्र की,शुभ्र अष्टमी वार।
मातु देवकी-अंक में,प्रभु विवान का प्यार।।
मनुज योनि सौभाग्य की,रहना सदा विवान
कर्म-पल्लवन ही करें,सुखद गीत की तान।।
🪷 एक में सब 🪷
अंतर्मन जाग्रत करें,
उर का खोल वितान।
बन विवान उर का भरें,
वातायन स- विहान।।
विवान=भगवान कृष्ण, जीवन से परिपूरित।
🪴 शुभमस्तु!
०६.०९.२०२२◆११.००पतन्म मार्तण्डस्य।
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