गुरुवार, 29 सितंबर 2022

कविता का आशीष🎸 [ दोहा ]

 388/2022


[कृतार्थ,कलकंठी, कुंदन,गुंजार,घनमाला ]

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✍️ शब्दकार ©

🎸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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    ⛳ सब में एक ⛳

वीणावादिनि ने किया,मानव वही  कृतार्थ।

कविता का आशीष दे,'शुभम्' जगत परमार्थ

सुत कृतार्थ  होता  वही,जो  देता  सम्मान।

मात-पिता  वे धन्य हैं, जिनकी शुभ संतान।।


कलकंठी की गूँजती, ध्वनि मीठी चहुँ ओर।

नृत्य करें  वन  बाग में,घन आवाहक  मोर।।

कलकंठी बाला सुघर,कर्षित करती ध्यान।

अनायास  पलकें  उठीं, भूल गया  संधान।।


कुंदन- सी नव देह की,देखी ज्यों ही ओप।

यौवनांग  छू  धन्य  तन,छूमंतर हो  कोप।।

संतति कुंदन-सी बने,जनक जननि की चाह

जो सुनता कहता वही,वाह! वाह! ही वाह!!


भौंरे   की गुंजार- सी, पायल  की  झंकार।

घर में भरती प्यार की,वीणा की  स्वरधार।।

द्रवित कौन होता नहीं,सुन अलि की गुंजार।

घर हो  बगिया  नेह की,बरसे नारी - प्यार।।


घनमाला होती विदा,देख शरद  का  नेह।

ओस  बरसती  शून्य से,बिंदु न बरसे   मेह।।

नीलांबर हँसने लगा,खिली धूप की  कांति।

घनमाला जाती दिखी,निर्मल सुखद सुशांति


             ⛳ एक में सब ⛳


घनमाला को देखकर, कलकंठी - गुंजार।

देती 'शुभम्' कृतार्थ कर,कुंदन-सा उपहार।


🪴 शुभमस्तु!


२८.०९.२०२२◆६.००आरोहणम् मार्तण्डस्य। 

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