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✍️ शब्दकार ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आलय -आलय रिक्त पड़े हैं,
सिसक रहा ईमान।
दूकानें बाजार माँगते,
ला- ला धर जा पैसा,
अधिकारी ऑफिस के बाबू,
कहते समय न वैसा,
सुविधा - शुल्क जरूरी,
चले लेखनी पूरी,
खिसक रहा ईमान।
तिलक लगाए माला डाले,
बैठा सजा पुजारी,
दर्शन करना भक्त बाद में,
दे न दक्षिणा प्यारी?
आशीष तभी दूँगा,
पहले तुझसे लूँगा,
बिखर रहा ईमान।
साइकिल पर चलने वाला,
अब कारों में घूमे,
नेता बना अरब का स्वामी,
नित्य षोडशी चूमे,
देशभक्त कहलाता,
बगुला -वेश सुहाता,
छितर रहा ईमान।
अवसर मिला न जिसको कोई
वही दूध का धोया,
चोरों की नगरी में बैठा,
कहीं अकेला सोया,
उसे न ए. सी.कारें,
कैसे घर को तारें,
पिचक रहा ईमान।
🪴शुभमस्तु!
०९.०९.२०२२◆११.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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