रविवार, 11 सितंबर 2022

सिसक रहा ईमान 🏠 [ गीत ]

 365/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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आलय -आलय रिक्त पड़े हैं,

सिसक रहा ईमान।


दूकानें       बाजार    माँगते,

ला- ला धर जा पैसा,

अधिकारी ऑफिस के बाबू,

कहते समय  न वैसा,

सुविधा - शुल्क  जरूरी,

चले     लेखनी      पूरी,

खिसक रहा ईमान।


तिलक लगाए  माला डाले,

बैठा  सजा  पुजारी,

दर्शन करना भक्त  बाद में,

दे न दक्षिणा  प्यारी?

आशीष तभी दूँगा,

पहले तुझसे लूँगा,

बिखर   रहा   ईमान।


साइकिल पर चलने वाला,

अब   कारों   में  घूमे,

नेता बना अरब का स्वामी,

नित्य  षोडशी   चूमे,

देशभक्त   कहलाता,

बगुला -वेश सुहाता,

छितर   रहा   ईमान।


अवसर मिला न जिसको कोई

वही दूध   का  धोया,

चोरों   की   नगरी    में   बैठा,

कहीं  अकेला सोया,

उसे न ए. सी.कारें,

कैसे घर   को तारें,

पिचक  रहा  ईमान।


🪴शुभमस्तु!


०९.०९.२०२२◆११.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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