367/2022
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शब्दकार
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जन गण मन को हरा बनाती,
हिंदी की हरियाली।
माँ ने माँ की भाषा ने नित,
हमको पाठ पढ़ाया,
लोरी की मधु स्वर लहरी से,
थपकी लगा उढ़ाया,
आजा निंदिया रानी,
माँ ने कही कहानी,
दे - दे कर की ताली।
हिंदी सावन हिंदी फागुन,
होली रंग दिवाली,
गौना, ब्याह, गीत सोहर के,
कजरी वह मतवाली,
हिंदी रोना गाना,
रूठे सजन मनाना,
दीपक - सी उजियाली।
अम्मा, चाची, भाभी, नानी,
जीजी,ताई, दादी,
भैया,पिता, और ताऊ जी,
बाबा की आजादी,
रिश्ते बड़े निराले,
साली, साढू,साले,
अंकल आंट न वाली।
माँ की भाषा का विकल्प क्या
कोई भाषा होती ?
चिंतन, मनन स्वप्न की भाषा,
मुक्ता ही शुभ बोती,
माँ का लाड़ लड़ाती,
वह हिंदी कहलाती,
मधुर सुधा की प्याली।
लिखना, पढ़ना और बोलना,
सीखें हम हिंदी में,
वैज्ञानिकता स्वर व्यंजन की,
है अक्षर , बिंदी में,
'शुभम्' काव्य ही लिखना,
हिंदी - बोधी दिखना,
बने देश बलशाली।
🪴 शुभमस्तु !
१०.०९.२०२२◆१२.४५प.मा.
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