389/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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छत - छत पर फहराते झंडे,
जनता आज्ञाकारी ?
एक बार आदेश हो गया,
चादर तानी सोया!
लगा राष्ट्र ध्वज छत टंकी पर,
राष्ट्रभक्ति में खोया,
यही यहाँ आजादी,
तानी रेशम खादी,
भारत माँ का भक्त अनौखा,
लगता विस्मय भारी।
होता हो अपमान ध्वजा का,
नहीं भक्त ने सोचा,
रुई ठूँस ली है कानों में,
रुचिकर लगता लोचा,
पत्रकार सब सोते!
बीज दाह के बोते!!
पट्टी बँधी हरी ऑंखों पर,
हुई रतोंधी तारी।
बीत गया अब डेढ़ मास भी,
झंडा - भक्त अनौखे,
मैले, फटे, झुके हैं झंडे,
किसको देते धोखे?
हैं सब कोरी बातें,
दिन भी इनको रातें,
बीट कर रहे कौवे काले,
देशभक्ति बीमारी !
इनको क्या दिखला पाएंगे,
भारत माँ की झाँकी?
करते नित अपमान ध्वजा का,
उन्हें शपथ है माँ की,
घर में रखें तिरंगे,
न हों और भी नंगे,
'शुभम्' स्वांग भी देख लिया अब,
कैसी भक्ति तुम्हारी।
🪴 शुभमस्तु !
२८.०९.२०२२◆१०.००
पतनम मार्तण्डस्य।
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