374/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️
शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
आओ वृक्ष -मित्र बन जाएँ।
छाया देकर ताप मिटाएँ।।
वृक्ष सदा हैं पर - उपकारी।
हवा बहाते शीतल न्यारी।।
वृक्षों जैसी छाया लाएँ ।
आओ वृक्ष - मित्र बन जाएँ।।
देते वृक्ष प्रसून सुगंधित।
तुलसी माता है नित वंदित।।
पीपल, बरगद, नीम लगाएँ।
आओ वृक्ष - मित्र बन जाएँ।।
छायादार मधुर फल वाले।
वृक्ष एक से एक निराले।।
लिपटीं रहतीं सघन लताएँ।
आओ वृक्ष -मित्र बन जाएँ।।
जहाँ वृक्ष बरसेगा पानी।
बने मनुज की सुखद कहानी।।
सूखा और अकाल भगाएँ।
आओ वृक्ष - मित्र बन जाएँ ।।
अपने अंग दान वे करते।
लकड़ी, मूल, शाख, फल भरते।।
'शुभम्' वृक्ष से शिक्षा पाएँ।
आओ वृक्ष -मित्र बन जाएँ।।
🪴शुभमस्तु !
२०.०९.२०२२◆९.३० आ.मा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें