361/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
📖 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
-1-
पुस्तकें हैं जीत तेरी,
पुस्तकों से प्रीत कर,
प्रगति के पथ पर बढ़ेगा,
मूढ़ता को जीत कर,
ज्ञान का भंडार पुस्तक,
निबिड़ तम उर का हरे,
'शुभम्' पुस्तक को उठा ले,
थक गया हो रीत कर।
-2-
आज जिस सोपान पर है,
पुस्तकों से ही मिला,
पुस्तकें ही उर प्रकाशक,
जिंदगी का सिलसिला,
पुस्तकें ही गुरु सदा से,
ज्ञान देतीं नित्य ही,
कर सकेगा ऐ 'शुभम्' हर,
तू फतह ऊँचा किला।
-3-
वेद, गीता ग्रंथ सारे,
ज्ञान के भंडार हैं,
सीख देते कर्म कर तू,
कर रहे उद्धार हैं,
पाठ जो नियमित करेगा,
तम हरे अज्ञान का,
जान ले यदि दुग्ध जीवन,
दुग्ध का वे सार हैं।
-4-
सब समय की मीत पुस्तक,
सब समय का साथ है,
है न बस कृति साज- सज्जा,
पठन - पाठन हाथ है,
आज तक गुरुजन हमारे,
थे पढ़ाते ग्रंथ से,
इस अकिंचन का सदा से,
विनत गुरु को माथ है।
-5-
ज्ञान का सूरज धरा पर ,
देखना तो ग्रंथ पढ़,
चंद्रिका सित सोम की जो,
चाहता तो ग्रंथ पढ़,
साथ कोई हो न तेरे,
तू अकेला हो पड़ा,
मीत शुभ कृति को बना कर,
हाथ में ले ग्रंथ पढ़।
🪴 शुभमस्तु !
०६.०९.२०२२◆६.०० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें