377/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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धीरे - धीरे चली आ रही
शरद सलोनी।
सावन भादों की रिमझिम-सी
बदली छाई,
बरस रही है धीरे - धीरे
घर - अंगनाई ,
लगे फुरफुरी सारे तन में,
कुछ अनहोनी।
शुभागमन से पहले करते,
सब अगवानी,
अति प्रसन्न कूकर शूकर की,
खींचा- तानी,
बंद रजाई कंबल भरके,
गरम बिछौनी।
गोभी फिरती फूली - फूली,
गोरी मूली,
आलू अँखुआये बोरों में,
रही न धूली,
खेतों में हलवाह झूमते,
फ़सलें बोनी।
उतर रही अंबर से गोरी,
परियाँ रानी,
सोते समय सुनाती दादी,
नित्य कहानी,
पर्व दशहरा दीवाली की,
खुशियाँ होनी।
🪴 शुभमस्तु !
२१.०९.२०२२◆७.१५ प.मा.
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