गुरुवार, 22 सितंबर 2022

शरद सलोनी 📘 [ गीत ]

 377/2022


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✍️ शब्दकार ©

🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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धीरे - धीरे चली  आ रही

शरद सलोनी।


सावन भादों की रिमझिम-सी

बदली   छाई,

बरस    रही   है    धीरे  -  धीरे

घर -  अंगनाई ,

लगे   फुरफुरी   सारे   तन  में,

कुछ अनहोनी।


शुभागमन    से  पहले  करते,

सब   अगवानी,

अति  प्रसन्न  कूकर शूकर की,

खींचा- तानी,

बंद   रजाई     कंबल   भरके,

गरम  बिछौनी।


गोभी  फिरती   फूली - फूली,

गोरी   मूली,

आलू   अँखुआये    बोरों   में,

रही  न धूली,

खेतों   में     हलवाह   झूमते,

फ़सलें बोनी।


उतर   रही   अंबर    से  गोरी,

परियाँ   रानी,

सोते   समय   सुनाती    दादी,

 नित्य कहानी,

पर्व   दशहरा    दीवाली   की,

खुशियाँ होनी।


🪴 शुभमस्तु !


२१.०९.२०२२◆७.१५ प.मा.


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