सोमवार, 19 सितंबर 2022

अक्षर-अक्षर ब्रह्म है 🕉️ [ दोहा ]

 369/2022

 

[अक्षत,अक्षर,अंकुर,अंजन,अधीर]

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✍️ शब्दकार ©

📖 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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        🪔 सब में एक🪔

अक्षत है परब्रह्म नित,सृजित जगत के जीव

शेष सभी क्षत हो रहे,शिखर न जिनके नीव

सोम भानु अक्षत रहें, प्रभु दें शुचि  वरदान।

सृष्टि सदा  चलती रहे, यदि हो कृपा महान।।


अक्षर- अक्षर  ब्रह्म  है,बुरे न  बोलें  बोल।

जो वाणी रसना कहे, शब्द-शब्द को तोल।।

अक्षर तुमने पढ़ लिए,किंतु न  जाना  सार।

ऐसे अक्षर - ज्ञान की,व्यर्थ सदा  भरमार।।


अंकुर उगते घास के,हरा अवनि का अंक।

नयन तृप्त  होते  सभी,दृश्य नहीं   है  पंक।।

अंकुर उगता  प्रेम का,उर के  बदलें  भाव।

धीरे - धीरे  नष्ट   हों,  उभर रहे   जो   घाव।।


अंजन आँखों में सजा, बदला छवि का रूप

बाला  की  लगने लगी,आभा कांति   अनूप

नारी के  शृंगार  में,  अंजन की   चमकार।

ओप बदलती गात में,शोभित विविधाधार।।


मन अधीर हो आपका, निर्णय कभी न ठीक

शांत हृदय  में लीजिए,हो तब ही  सब  नीक

सजन  तुम्हारे   शीघ्र ही, आएँगे   धर   धीर।

विरहिन हो न अधीर तू, जाकर सरिता तीर।


   🪔  एक में सब  🪔

अक्षर  अक्षत   तू   नहीं,

                        यौवन   हो  न  अधीर।

अंकुर   अंजन   के   मिटें,

                          नित्य  न  शेष   लकीर।।


🪴शुभमस्तु !


१४ सितंबर २०२२◆४.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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