रविवार, 11 सितंबर 2022

कौन कहता है ? 🦢 [अतुकान्तिका]

 364/2022


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✍️ शब्दकार ©

🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् '

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कौन कहता है कि

दुनिया में 

ईमानदारी नहीं है,

ईमानदार नहीं हैं,

बस बात समझने की है,

उलझने की नहीं है।


मिलता है 

जिसे भी अवसर,

भला वह 

कब चूकता है?

वह अपनी

 करनी की

मिसाइल धूकता है,

जब तक पूँछ 

इज्जत

बचाए रखती है,

वह अपने को 

ऊँट महसूसता है।


आता है जब  ऊँट

किसी पहाड़ के नीचे

दूध  का जला

छाछ भी फूँकता है,

भले ही

उठने पर पूँछ 

जमाना जी भर

उसके ऊपर

थूकता है।



बचा रह जाता है

किसी कोने में

पड़ा हुआ

ईमानदार बेचारा,

क्योंकि उसे 

अवसर नहीं मिला,

इसलिए

 वह फ़तह 

नहीं कर पाया

बेईमानी का किला,

वह अपनी कर्तव्यनिष्ठा से

तिल भर  भी

नहीं हिला,

और रह गया

ईमानदार बना हुआ।


तराजू के पलड़े में

पड़ा हुआ हो

ज्यों पासंग,

वैसे मनुष्यता की

डंडी पर

'शुभम्' ईमानदारी

दोलित हो रही है,

अपने यथार्थ रूप में

संबोधित हो रही है,

माला- रोपित

और  रेशम से शॉलित 

हो रही है।


🪴 शुभमस्तु !


०८.०९.२०२२◆८.३० पतनम मार्तण्डस्य।

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