383/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
हेल सिलासी नीति के, पोषक पालनहार।
कर सकते क्या देश का,सोचें बेड़ा पार??
कोरे नारों से नहीं, होता कभी विकास,
फसल बचाने के लिए ढम -ढम है बेकार।
दीमक चुन-चुन खा रही,राष्ट्र वृक्ष की मूल,
बिल में जनता -धन भरे,चूहे करें विचार।
जनता रहे गरीब ही,शिक्षा से रह दूर,
बसी हृदय में भावना, जो थामे पतवार।
गिद्ध नोचते लोथ को, जिंदा चीरें माँस,
तिलक ,छाप,माला सजी,धर्मों का व्यापार।
बिना चढ़ावे के चढ़े, देवालय - सोपान,
द्वार पुजारी रोकते, भक्त हुए लाचार।
जागी यदि जनता कहीं,होगी भीषण क्रांति,
इसे सुलाये ही रखें, या कर दें बेजार।
सही लाभ देना नहीं,जनता रहे अपंग,
बस वैशाखी बाँट कर,दें दुख को निस्तार।
इथोपिया को हैल का, देकर रूपाकार,
हेल सिलासी भोगता,स्वयं सुखों का सार।
नाव चलाने के लिए, सीखो गुर हे मीत!
'शुभम्'सभी को खुश नहीं,यों रख पाओ यार
# हेल सिलासी इथोपिया का सम्राट था।जिसकी नीति जनता को गरीब,बीमार,दुखी,अशिक्षित और बेवश रखकर शासन करने की थी।जनता जब जागरूक हुई तो वह एक कैदी की तरह मरा।
🪴शुभमस्तु !
२४.०९.२०२२◆ २.३० पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें