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✍️शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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दलविहीन एकांत में,खड़ा एक तरु दीन।
पथिकों को छाया नहीं,आशा नहीं नवीन।।
पादप पर पल्लव नहीं,शून्य शांति की छाँव।
जाओगे सानिध्य में, जल जाएंगे पाँव।।
पंछी भी जाते नहीं, सूखा हो यदि पेड़।
छाया की आशा कहाँ, पास न आए भेड़।।
शुष्क नारि-नर से नहीं,तृण भर कोई आस।
तरु देता निज काष्ठ को,नहीं करे उपहास।।
उड़ते-उड़ते थक गया,हो जब नभचर दीन।
सूखे तरु की शाख पर,पाता शांति नवीन।।
तना, पत्र,शाखा सहित,देता है फल, फूल।
तरुवर सदा महान है, पर- उपकारी मूल।।
वाणी से दूषण नहीं, फैलाता तरु नेक।
जीवन उनमें भी बसा,नित परहित की टेक।।
🪴 शुभमस्तु !
२०.०९.२०२२◆७.३० आ.मा.
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